डर…डर…डर…!

 


टिप्पणी : गोपाल वाजपेयी

जुबां पे मोहर लगाना कोई बड़ी बात नहीं,
बदल सको तो बदल दो मेरे खयालों को।
एक शायर की ये पंक्तियां अनायास ही याद आ रही हैं। एक तरफ उज्जैन पुलिस दावा कर रही है कि वह ऑपरेशन पवित्र चला रही है, अपराधियों को जिलाबदर किया जा रहा है। दूसरी तरफ, बदमाश निडर होकर धड़ाधड़ वारदात कर पुलिस को चुनौती दे रहे हैं। बेलगाम बदमाश किसी भी चौराहे, किसी भी रोड पर जानलेवा हमले कर लूटपाट कर रहे हैं। दिनदहाड़े घरों में चोरी हो रही हैं। गुंडागर्दी इतनी कि मामूली विवाद में गोली मारकर हत्या कर देते हैं। हमेशा शांत रहने वाले शहर की फिजां में डर घुल गया है, क्यों ?
१८ अक्टूबर : गोवर्धन धाम में रात १२ बजे दो कपड़ा व्यापारियों से लूट का प्रयास, विफल होने पर चाकुओं से हमला, एक व्यापारी गंभीर रूप से घायल।
१६ अक्टूबर : तरणताल के पास पेट्रोल पंप कर्मचारी की आंखों में मिर्च झोंककर चाकू से हमला, गंभीर रूप से घायल, पौने छह लाख रुपये लूटे।
१४ अक्टूबर : बसंत विहार में डिप्टी कलेक्टर व मंछामन में प्रोफेसर के घर चोरी।
१२ अक्टूबर : बसंत विहार में डीआईजी बंगले के सामने से तीन बाइक चोरी।
०५ अक्टूबर : फ्रीगंज स्थित दुर्गा प्लाजा के सामनेे दो भाइयों पर फायरिंग। एक भाई की मौत।
०४ अक्टूबर : फ्रीगंज स्थित ज्योतिनगर में अधीक्षण यंत्री के मकान में दिनदहाड़े चोरी।
०३ अक्टूबर : इंदौर रोड पर गोल्डन पेट्रेल पप के पास बाइक पर जा रहे छात्र-छात्रा को छह बदमाशों ने लूटा, चाकू से हमला किया।
०२ अक्टूबर : इंदौर रोड स्थित गोल्डन पेट्रोल पंप पर लूट का प्रयास। विफल होने पर पंप कर्मचारी के सीने में चाकू मारा।
विगत १५ दिन में हुईं, ये वो वारदात हैं। जिनसे शहर की कानून-व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न लग रहा है। चिंतित करने वाला पहलू यह है कि लूटपाट व चोरी की इन वारदातों में से एक-दो का ही खुलासा हो सका है। ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी हैं। बीते तीन माह में शहर में अपराध का ग्राफ अचानक क्यों बढ़ गया? क्या पुलिस ने बदमाशों के आगे घुटने टेक दिए हैं? क्या पुलिस इन वारदात को सामान्य श्रेणी में गिनती है? क्या ये वारदात भी अन्य वारदात की भांति फाइलों में कैद होकर रह जाएंगी? क्या थाना प्रभारी व बीट प्रभारी अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल हैं? विफल हैं तो पुलिस के आला अफसरों ने क्या कार्रवाई की? क्या पुलिस का ऑपरेशन पवित्र व जिला बदर की कार्रवाई कागजों में चल रहा है? नवरात्र व दीपावली जैसे त्योहारों के दौरान पुलिस का चेकिंग अभियान क्या मात्र दिखावा था? वारदात पर वारदात होती रहीं, पुलिस ने इन्हें रोकने के लिए रणनीति क्यों नहीं बनाई? सालों से शहर में जमे थाना प्रभारियों को क्यों नहीं हटाया जाता? क्या नए एसपी से सीएसपी व थाना प्रभारियों का तारतम्य नहीं बन पा रहा है? बड़ा सवाल यह भी है कि शहरवासियों विशेषकर व्यापारियों का भरोसा कैसे वापस लौटेगा? इसके लिए पुलिस ने क्या कदम उठाए?
इन सवालों के जवाब कौन देगा? दरअसल, इसे दुर्योग कहें या इत्तेफाक। जब से नए पुलिस अधीक्षक ने कार्यभार संभाला, शहर में अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। अक्टूबर माह में बदमाशों की धमाचौकड़ी से शहरवासी सहमे हुए हैं। दीपावली से ठीक पहले जानलेवा हमला कर हुईं लूट की दो वारदातों ने व्यापारियों में दहशत भर दी है। पुलिस की लापरवाही का आलम यह है कि तरणताल के पास पेट्रोल पंप कर्मचारी पर चाकू से जानलेवा हमला कर लूट की वारदात के बाद भी पुलिस सुस्त रही। नतीजा, ठीक एक दिन बाद बदमाशों ने दो व्यापारियों को निशाना बनाया। झेंप मिटाने के लिए पुलिस तर्क दे रही है कि ये सारी वारदात बाहरी बदमाशों ने की हैं। इसी तर्ज पर पुलिस ने शनिवार को कुछ कंजरों को दबोचा। पुलिस के अनुसार इंदौर रोड पर बाइक सवारों से छीनाझपटी और चाकू से हमला इन्हीं बदमाशों ने किया है। ये भी संभव है कि एक-दो दिन में पुलिस इन्हीं बदमाशों पर अन्य वारदात का ठीकरा भी फोड़ देगी। लेकिन इससे पुलिस की चुनौती कम नहीं हो सकती। शहरवासियों में आम धारणा यह बन रही है कि कुछ माह से पुलिस की गश्त बहुत कमजोर हो गई है। चेकिंग अभियान दो पहिया वाहन चालकों से अवैध वसूली के लिए चलाया जाता है। इस धारणा को बदलने की जिम्मेदारी पुलिस अफसरों की है। उन्हें स्वयं मैदान में उतरना पड़ेगा, तभी उनके अधीनस्थ पुलिस वाले सक्रिय होंगे। लगातार नाकाम हो रहे व सालों से एक ही जगह पर जमे थाना प्रभारियों को बदलना होगा। क्योंकि किसी शायर ने खूब कहा है-
उन गुलों से तो कांटे अच्छे,
जिनसे होती तौहीन-ए-गुलशन…
क्योंकि….
ख्वाहिशें तभी मुक़म्मल होती हैं,
जब तलब भी शिद्दत से भरी हो..

Leave a Reply

error: