गल रहीं हड्डियां, घुट रहा दम, टूट रहीं सांसें


टिप्पणी : गोपाल वाजपेयी (उज्जैन)
लगी प्यास गजब की थी और पानी में जहर
था, पीते तो मर जाते और न पीते तो मर जाते….
नागदा से तीन किमी दूर चंबल नदी किनारे स्थित गांव परमारखेड़ी। आबादी कुल डेढ़ हजार। आजकल यहां करीब ४०० लोग बीमार हैं। हर घर में एक व्यक्ति गंभीर बीमारी से जूझ रहा है। शेष लोग भी स्वस्थ नहीं हैं। ये भी साल में कई बार बीमार होते हैं। बीमारी से गुरुवार को एक व्यक्ति की मौत हो गई। आठ दिन पहले परमारखेड़ी से सटे गांव भगतपुरी में भी बीमारी से एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है। परमारखेड़ी में दस दिन से स्वास्थ्य शिविर चल रहे हैं। यहां बुखार, खुजली, जोड़ों का दर्द, श्वांस के रोगी मिले हैं। गांव में दहशत का माहौल है। करीब १२ गंभीर मरीजों को नागदा व उज्जैन रैफर किया गया है। इस गांव में करीब ५० लोग विकलांग हो चुके हैं। विकलांग भी ऐसे कि चारपाई से उठने में भी सक्षम नहीं। जुबां भी साथ छोड़ चुकी है। परमारखेड़ी के अलावा आसपास के गांव किलोडिय़ा व भगतपुरी में बीमारी फैल रही है।
नागदा में चल रहे ग्रेसिम उद्योग व लेंसेक्स उद्योग की केमिकल डिविजन ने चंबल नदी को जहरीला नाला बना दिया है। केमिकल डिविजन से निकला जहरीली पानी, जहरीले कचरे के साथ एक नाले से होकर चंबल नदी में मिल रहा है। इसका दुष्प्रभाव चंबल नदी के किनारे बसे करीब २१ गांवों पर है। इन गांवों का भू-जल स्तर जहरीला हो चुका है। जहरीला इस कदर हो चुका है कि प्रदूषण विभाग भी इस पानी को पीना तो बहुत दूर , किसी अन्य काम में इस्तेमाल भूलकर भी न करने की सलाह दे चुका है। लेकिन ग्रामीण मजबूर हैं। वे चंबल नदी से सीधे या बोरवेल के माध्यम से पेयजल के रूप में इस जहर को पीने व अन्य इस्तेमाल करने को मजबूर है। नतीजा, यहां युवा बूढ़े नजर आने लगे हैं। लोगों की हड्डियां गल रही हैं, दम घुट रहा है और सांसें टूट रही हैं। इन गांवों में सामाजिक तानाबाना भी छिन्न-भिन्न हो रहा है। यहां कोई शादी नहीं करना चाहता।
प्रदूषण की वजह से १४ गांवों की हालत बहुत खराब है। विशेषकर केमिकल डिविजन से सटे छह गांवों में स्थितियां भयावह हैं। यहां के लोग एलर्जी, श्वांस रोग, कैंसर, पैरालाइसिस व किडनी के रोगों से जूझ रहे हैं। यहां एक शायर की ये पंक्यितां चरितार्थ हैं कि-
बहुत अंदर तक तबाही मचा देता है
वो अश्क, जो आँख से बह नहीं पाता…
नागदा के वार्ड मेहतास की आबादी करीब एक हजार है। यह वार्ड केमिकल डिविजन से बिल्कुल सटा है। इस वार्ड को कैंसर जैसी घातक बीमारी ने घेर रखा है। करीब ४० लोग कैंसर से पीडि़त हैं। खास बात यह है कि प्रशासन की ओर से मेहतास को कैंसर जोन घोषित किया जा चुका है।
कई रिपोर्ट्स में यह सिद्ध हो चुका है कि इन गांवों की तबाही में विशुद्ध रूप से ये दोनों केमिकल डिविजन जिम्मेदार हैं। इसके बाद भी कोई सार्थक कदम नहीं उठाए गए। गत फरवरी माह में पर्यावरण मंत्री लाल सिंह आर्य ने स्थानीय विधायक के साथ ही प्रदूषण विभाग की टीम के साथ दौरा किया था। इस दौरान टीम ने कई गांवों से पानी के सैंपल लिए। परमारखेड़ी पहुंचे मंत्री उस समय विचलित हो गए, जब वह कालू सिंह के परिवार से मिले। कालू सिंह के तीन संतान बड़ी बेटी शारदा (२४), बेटा मान सिंह (२२) व कन्हैयालाल (२०) की हड्डियां इतनी गल चुकी हैं कि ये तीनों चारपाई से उठ भी नहीं पाते। बोल भी नहीं पाते। वे तिल-तिल मर रहे हैं। हालात इतने विकराल होने के बाद जब भी चंबल के पानी को प्रदूषित करने व गांवों में बीमारी का मामला गरमाता है। इस मसले को दबाने की कोशिश शुरू हो जाती है। हालत यह है कि नागदा के स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी के साथ ही नागदा एसडीएम ये तो मान रहे हैं कि प्रदूषित पानी के कारण बीमारियां फैल रही हैं, लेकिन ये बताने की जहमत नहीं उठा रहे कि इसे रोकने के लिए क्या इंतजाम किए? दोनों उद्योगों पर लगाम कसने के लिए क्या किया? प्रदेश सरकार को कई बार जांच दलों द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में स्पष्ट है कि औद्योगिक प्रदूषण के कारण चंबल का पानी जहर बन चुका है। और इसका इस्तेमाल करने वाले ग्रामीण मौत के मुंह जा रहे हैं। चंबल में रासायनिक पानी मिलने से नागदा के साथ ही खाचरौद व महिदपुर क्षेत्र भी इससे प्रभावित है। खतरे को भांपते हुए और जनता की आवाज को नागदा व महिदपुर विधायक कितनी बार विधानसभा में उठा चुके हैं। जब मामला ज्यादा सुर्खियों में आता तो जिम्मेदार अधिकारी ग्रेसिम व लैंसेक्स उद्योगों के पीआरओ की भांति जवाब देते हैं कि दोनों इकाइयां वाटर ट्रीटमेंट की योजना पर काम कर रही हैं। लेकिन ये योजना कागजों से निकलकर जमीन पर कितनी अमल में आई? इसका जवाब न जिम्मेदार अधिकारियों के पास है और न इन दोनों उद्योगों के प्रवक्ताओं के पास। दोनों केमिकल डिविजन पर अक्सर ये आरोप लगते हैं कि इन इकाइयों को जितने रासयिकि पदार्थ व गैसों का उत्पादन व भंडारण करने की अनुमति है, उससे कई गुना अधिक उत्पादन व भंडारण किया जा रहा है। देश-प्रदेश के विकास के लिए उद्योग जरूरी हैं। इससे किसे इंकार है। लेकिन ऐसे उद्योग-धंधे और विकास देश के माथे पर इतिहास पर कलंक बनेंगे, जो लोगों की जान की कीमत पर आगे बढ़ें। व्यक्तिगत स्वार्थ पूरा करने और उद्योग-धंधे से रोजगार व राजस्व बढऩे की दुहाई देकर हम इंसानियत का कत्ल नहीं कर सकते। क्योंकि, किसी शायर ने खूब कहा है-
इश्क पे मुकदमा करके क्या मिल जाएगा, जनाब-
ए-हुस्न को पकड़ो जो सारे फसाद की जड़ है
इसलिए राज्य सरकार को इस मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए प्रदूषण से प्रभावित इन गांवों के लिए स्वीकृत २१ करोड़ की जल आवर्धन योजना पर युद्ध स्तर पर काम करना चाहिए। इसके साथ ही दोनों केमिकल डिविजन से निकलने वाले जहरीले पानी व कचरे का ट्रीटमेंट कराने पर सख्ती करें। किसी भी हालत में चंबल को जहरीला होने से बचाएं, जिससे प्रभावित २१ गांवों के करीब ३५ हजार लोगों की जिंदगी में खुशहाली आ सके।

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