(प्रसंग शारदीय नवरात्र पर विशेष आलेख ) ” शक्ति की उपासना का मंगल पर्व शारदीय नवरात्र’ लेखक – डॉ अशोक कुमार भार्गव, आईएएस संपर्क – 9425427525 dr_ashok_bhargava@yahoo.com
भारत की सांस्कृतिक चेतना के भव्य और विराट स्वरूप की अभिव्यक्ति हमारे पर्व और त्योहार हैं जो राष्ट्रीय हर्ष, उल्लास, उमंग और उत्साह के प्रतीक हैं। ये देश काल और परिस्थिति के अनुसार अपने रंग-रूप आकार में भिन्न भिन्न हो सकते हैं और उन्हें व्यक्त करने के तरीके भी भिन्न भिन्न हो सकते हैं किंतु उनका सरोकार अंततः मानवीय कल्याण, सुख और आनंद की उपलब्धि अथवा किसी आस्था, विश्वास, परम्परा या संस्कार का संरक्षण ही होता है। इस दृष्टि से भारतीय चिंतन अनेक संदर्भों, प्रसंगों, द्रष्टांतों और प्रेरक कथाओं से समृद्ध है जिनमें हमारी संस्कृति के सौम्य तत्वों की धरोहर विद्यमान है। यह धरोहर मानवीय मूल्यों की प्रेरक शक्ति है जो असत्य पर सत्य की और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक होती है। शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र आत्म संयमी साधकों को आध्यात्मिक प्रेरणा देने की शक्ति का पर्व समूह है। ऋग्वेद के दसवें मंडल में एक पूरा सूक्त शक्ति की आराधना पर आधारित है, जिसमें शक्ति की भव्यता का दुर्लभ स्वरूप मुखरित हुआ है। ” मैं ही ब्रह्म के दोषियों को मारने के लिए रुद्र का धनुष चलाती हूं। मैं ही सेनाओं को मैदान में लाकर खड़ा करती हूं। मैं ही आकाश और पृथ्वी में सर्वत्र व्याप्त हूं। मैं ही संपूर्ण जगत की अधिकारी हूं। मैं पारब्रह्म को अपने से अभिन्न रूप में जानने वाले पूजनीय देवताओं में प्रधान हूं। संपूर्ण भूतों में मेरा प्रवेश है।” भारतीय परंपरा में मनोयोग पूर्वक की गई शक्ति की साधना आध्यात्मिक कायाकल्प की वैज्ञानिक विधि का ही पर्याय है। इस साधना की समग्र सिद्धि इस बात पर निर्भर करती है कि साधक का मन निष्पाप हो, ह्रदय निष्कलंक हो और उसकी साधना मानवीय मूल्यों, आदर्शों के लिए समर्पित हो। वस्तुतः साधना का आधार आत्म संयम ही है। मन वचन और कर्म की पवित्रता से ओतप्रोत भक्ति भाव शक्ति की उपासना को सार्थक और फलदायी बनाता है। सनातन हिन्दू धर्म में परमेश्वर की तीन महा शक्तियों यथा महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती की अर्चना और आराधना आदिकाल से ही चली आ रही है। किसी भी राष्ट्र की सर्वतोमुखी प्रगति के लिए केवल शास्त्र बल ही नहीं वरन शस्त्र और धन बल भी परम आवश्यक है। इसीलिए हम विद्या बुद्धि के लिए ज्ञान की अधिष्ठात्री मां सरस्वती की समर्चना करते हैं तो शक्ति, साहस, शौर्य और पराक्रम के लिए आदि शक्ति मां दुर्गा की अर्चना तो वहीं सुख संपत्ति और ऐश्वर्य के लिए महालक्ष्मी की आराधना करते हैं। मार्कंडेय पुराण का देवी महात्म्य खंड ‘दुर्गा सप्तशती’ के नाम से जाना जाता है। इसमें मां दुर्गा के तीन चरित्र वर्णित हैं। त्रिगुणात्मक शक्ति के प्रतीक रूप में सत्वगुणात्मिक शक्ति सरस्वती, रजोगुणात्मिका शक्ति के रूप में महालक्ष्मी तथा तमोगुणात्मिकता शक्ति के रूप में महाकाली। तीनों चरित्रों से संबंधित तीन महान शौर्य गाथाएं हैं। प्रथम चरित्र में मधु और कैटभ नामक राक्षसों के वध का विस्तृत वर्णन है। मध्यम चरित्र में कुख्यात संत्रासक महिषासुर के विनाश की रोमांचकारी घटना है और अंतिम चरित्र में आततायी राक्षस शुंभ तथा निशुंभ के समग्र विनाश की रौद्र कथा चित्रित है। नवरात्र की प्रतिपदा के पवित्र दिवस पर घट स्थापना कर सात प्रकार की मिट्टियों से भरे हुए पात्र में शुद्ध जल के साथ जो बोई जाती है जो पल्लवित होकर पवित्र ज्वारे का रूप धारण करती है। पंच पल्लव और पंचरत्न मिलाकर स्थापित घट या कलश के समीप ही मां दुर्गा की उज्जवल छवि वाली अप्रतिम सौंदर्य की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है और नवरात्र में नवदुर्गा के नौ स्वरूपों की यथा शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री के रूप में भक्ति भाव से अर्चना की जाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा अर्थात दुखेन गम्यते प्राप्यते वा, की उपासना का विशिष्ट महत्व और अनूठा रहस्य है । हम यदि मां की अर्चना, आराधना, पूजा पाठ, मेवा मिष्ठान्न, आभूषण, परिधान आदि समर्पण से ही तृप्त हो जाएं तो हम उपासना के मूल मंतव्य और मर्म को सही अर्थों में समझ नहीं पाएंगे। वस्तुतः मां दुर्गा की विराट प्रतिमा संपूर्ण राष्ट्र का प्रतीक है। राष्ट्र का समग्र शारीरिक बल, संपदा बल और ज्ञान बल अदम्य पराक्रमी सिंह के समान ही है। शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा का यह मुखर स्वरूप राष्ट्र भारती के रूप में प्रकट होता है। यद्यपि राष्ट्र को शास्त्र,शस्त्र और धन तीनों अवश्य चाहिए किंतु बुद्धि और विवेक के बिना यह तीनों बल निरर्थक ही नहीं वरन पूर्णत: विनाशक और संहारक भी होते हैं। इसीलिए इनके साथ बुद्धि विनायक महाकाय श्री गणेश भी रहते हैं जिनकी नीर क्षीर विवेक द्रष्टि के समक्ष विघ्न बाधाओं के, चुनौतियों के तूफान नत मस्तक हो जाते हैं। अपने भव्य स्वरूप में चहुंओर फैली हुई आदि शक्ति की दसों भुजाओं के अस्त्र-शस्त्र महान अपराजेय राष्ट्र की अमित शक्ति की ओर संकेत करते है। संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति अथवा राष्ट्र नहीं है जिसका कोई विरोधी अथवा गुप्त शत्रु न हो।अतः शक्ति की उपासना और कुछ नहीं वरन महिमामयी अखंड मां भारती की शक्ति की ही उपासना है। जिस प्रकार वेद अनादि हैं उसी प्रकार दुर्गा सप्तशती भी अनादि है। इसमें वर्णित मधुकैटभ, महिषासुर और शुंभ, निशुंभ जैसी आसुरी शक्तियां महामोह, महामाया, महाअविद्या, अन्याय, आतंक, शोषण, अनाचार, विध्वंस और सर्वनाश की प्रतीक हैं। यदि मानसिक विकारों, चिंताओं और संकटों से मुक्त सुखद, समृद्ध, यशस्वी, आनंदमय स्वस्थ जीवन चाहते हैं तो हमें मां दुर्गा का आराधन निर्मल भक्ति भाव से सुनिश्चित करना चाहिए। सुरथ रूपी कर्म और एकाग्रता रूपी समाधि के समक्ष जब-जब विघ्न बाधाओं की चुनौतियां आई हैं तब मां दुर्गा ही उनके विनाश का कारक सिद्ध हुई है । निसंदेह मन के धरातल पर मां दुर्गा की उपासना से हम महारोग,महासंकट,महादुख, महाशोक और महोत्पात से मुक्त हो जीवन को धन्य और मंगल बना सकते हैं। भारत की सांस्कृतिक चेतना प्रारंभ से ही मातृशक्ति के प्रति श्रद्धा, सम्मान,अर्चन और वंदन के भाव से समर्पित रही है। और इसीलिए हम सभी नवरात्रि में अपने अपने मनोरथ सिद्धि के लिए विद्या, लक्ष्मी और शक्ति की उपासना करते हैं। यह अद्भुत परंपरा संसार में अन्यत्र कहीं भी वर्तमान नहीं है। वहीं दूसरी ओर हम बड़े ही श्रद्धा और आस्था के भाव से नवमी के दिन कन्याओं को रोली का तिलक लगाकर, हाथ में मौली बांधकर और उपहार भेंट सहित उनका पूजन भी करते हैं। यह संस्कार भी संसार के किसी भी देश या समाज में नहीं है। किंतु हमारे देश में कन्या भ्रूण हत्या तथा महिलाओं के प्रति बढते जघन्य अपराध हमारी दूषित मानसिकता के विरोधाभास की पराकाष्ठा है। विख्यात बांग्ला लेखक शरतचंद्र ने कहा था ” मानव की मौत देखकर इतना दुख नहीं होता जितना मानवता की मौत पर।” निसंदेह मातृशक्ति के प्रति हमारी नकारात्मक सोच और कन्या भ्रूण हत्या मानवता की मौत से कम नहीं है। आजादी के अमृत काल में शारदीय नवरात्र का सबसे बड़ा संकल्प यही है कि हम मातृशक्ति और बेटियों के प्रति सम्मान तथा पूजन के पवित्र संस्कार को सही अर्थों में कार्य रूप में परिणित कर आदि शक्ति की सच्ची उपासना करें क्योंकि मातृशक्ति और बेटियों की वास्तविक आजादी के बिना हमारी आजादी अधूरी है। डॉ अशोक कुमार भार्गव आईएएस (लेखक मप्र के पूर्व आईएएस अधिकारी हैं)
संक्षिप्त परिचय,
डॉ अशोक कुमार भार्गव भारतीय प्रशासनिक सेवा ( 2001बैच) के वरिष्ठ अधिकारी हैं। डॉ भार्गव अपने बैच के टाॅपर हैं। 18 अगस्त 1960 को इंदौर में जन्मे डॉ भार्गव ने एम. ए. एलएलबी (ऑनर्स) अर्थशास्त्र में पीएचडी तथा नीदरलैंड के अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक अध्ययन संस्थान हेग से गवर्नेंस में पीजी डिप्लोमा (प्रावीण्य सूची में प्रथम स्थान ) प्राप्त किया है। अपने सेवाकाल में प्रदेश के विभिन्न जिलों में एडीएम, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत तथा कलेक्टर जिला अशोकनगर, जिला शहडोल तथा कमिश्नर रीवा और शहडोल संभाग, कमिश्नर महिला बाल विकास, सचिव, स्कूल शिक्षा पदस्थ रहे हैं सचिव, मध्य प्रदेश शासन लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण विभाग से सेवानिवृत्त हुए हैं। डॉ भार्गव को भारत की जनगणना 2011 में उत्कृष्ट कार्य के लिए राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया है।कमिश्नर महिला एवं बाल विकास की हैसियत से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान, राष्ट्रीय पोषण अभियान और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना में उत्कृष्ट कार्य के लिए भारत शासन से 3 नेशनल अवॉर्ड, सर्वोत्तम निर्वाचन प्रक्रिया के लिए भारत निर्वाचन आयोग से राष्ट्रपति द्वारा नेशनल अवॉर्ड, स्वास्थ्य सेवाओं में उत्कृष्ट कार्य के लिए तीन नेशनल स्कॉच अवार्ड के साथ ही मंथन अवार्ड, दो राज्य स्तरीय मुख्यमंत्री उत्कृष्टता तथा सुशील चंद्र वर्मा उत्कृष्टता पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए हैं। कमिश्नर रीवा संभाग की हैसियत से डॉ भार्गव द्वारा किए गए शिक्षा में गुणात्मक सुधार के नवाचार के उत्कृष्ट परिणामों के लिए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है।साथ ही रीवा संभाग के लोकसभा निर्वाचन में दिव्यांग मतदाताओं का मतदान 95% देश में सबसे अधिक के लिए नेशनल अवॉर्ड। प्रदेश में निरोगी काया अभियान में उत्कृष्ट कार्य के लिए भी पुरस्कृत। डॉ भार्गव सामाजिक और शैक्षणिक विषयों पर स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य करते हैं और मोटिवेशनल स्पीकर हैं। वर्तमान में डॉ भार्गव नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण में सदस्य (प्रशासनिक) तथा सचिव शिकायत निवारण प्राधिकरण के पद पर कार्यरत हैं।