दिग्गी राजा की नर्मदा परकम्मा के मायने तलाशते रह जाओगे

नरसिंहपुर और होशंगाबाद जिले को जोडने वाला नर्मदा किनारे का खैरा घाट। दोपहर के बारह बज रहे हैं और राम जानकी मंदिर की संस्कृत पाठशाला में लगी कनात में भोजन हो रहा है। जिसको जहां जगह मिल रही है प्लेट में खाना भरकर बैठकर खाना खा रहा है। भोजन करने वालों में नर्मदा परकम्मा करने वाले लोग हैं तो पिपरिया और गाडरवारा के नेता कार्यकर्ता हैं जो दिग्विजय सिंह की नर्मदा परकम्मा में शामिल होने आये हैं। एक कमरे में दिग्विजय सिंह खाना खाकर आराम कर रहे हैं तो उनके भाई लक्ष्मण सिंह की बगल के कमरे में पंचायत चल रही है तो कांग्रेस नेता रामेश्वर नीखरा पत्रकारों को यात्रा का बैकग्राउंडर बता रहे थोडी दूर पर दिग्विजय सिंह की पत्नी अमृता राय भी गांव की महिलाओं के साथ व्यस्त हैं वो उनके बीच बैठ भजन और ढोलक की थापों के बीच ताल मिला रहीं हैं। उधर इस भंडारे का इंतजाम करने वाले अर्जुन पलिया कहते हैं पांच सौ लोगों का कहा था सात सौ का भोजन बनवाया डेढ हजार लोग आ गये नर्मदा मैया की कृपा से कोई भूखा नहीं जायेगा।
मगर जाने की तैयारी दिग्विजय सिंह ने कर ली है कमरे से बाहर निकल कर कहते हैं हो गया है विश्राम तो चलें, सांडिया पहुंचना है। और दिग्विजय सिंह चल पडते हैं। पैरों में स्पोर्टस शूज हैं तो हाथ में पीतल के मूढे वाली लाठी, सिर पर सफेद गमछे को फेंटा जैसा कसकर धूप से बचने की कोशिश है तो कमर में लटके बैग में मोबाइल और छोटा डिजिटल कैमरा है।
नर्मदा किनारे के उबड खाबड रास्तों पर दिग्विजय सिंह की ये परकम्मा दशहरे से शुरू हुयी है जो करीब साढे तीन हजार किलोमीटर किनारों का चक्कर लगाने के बाद नरसिंहपुर जिले के बरमान में ही खत्म होगी।
दिग्विजय कहते हैं कि रोज पंद्रह से बीस किलोमीटर पैदल चल रहा हूं कोशिश है कि मार्च तक गर्मी आने के पहले ही परिक्रमा पूरी कर लूंगा। मगर इस घनघोर राजनीतिक दिनों में आपको ये यात्रा की क्या सूझी ? मेरे मन में बहुत दिनों से इस यात्रा को करने की इच्छा थी जब वक्त सही लगा तो गुरूजी के आदेश के बाद शुरू कर दी और राजनीति ? अरे उससे छह महीने की छुटटी ले ली है मैंने। फिर हंसकर कहते आप लोग भी तो छुटटी लेते हैं कि नहीं या पूरे वक्त पत्रकारिता ही करते रहते हो। मगर इस उमर में ये कठिन पदयात्रा..तो देखो उमर की बात नहीं करो मेरी उमर पचास के बाद आकर ठहर गयी है मैं अपने आपको पचास का ही मानता हूं और जिसको मेरे साथ चलना है चले और ये मेरी धार्मिक यात्रा है जिसको जो सोचना है सोचे।
उसी बीच नर्मदा के बहाव में जानवर का शव बहते दिखता है तो वो आगे चल रहे ढोल को बंद करवा देते हैं और हाथ जोडकर प्रणाम कर चलने लगते हैं। दिग्विजय की इस नर्मदा परकम्मा में बडे बूढे सब हैं कुछ उनकी उमर के लोग हैं तो कुछ बुजुर्ग हैं तो कुछ युवा भी हैं जो राजा साहब के साथ का हवाला देकर घर से निकल पडे हैं भोपाल के रवींन्द्र साहू हैं जो अपना झूमर का बिजनेस मैनेजर के हवाले कर छह महीने के लिये आ गये हैं कहते हैं अब तो दीवाली और नया साल नर्मदा किनारे ही मना कर लौटेंगे। वैसे घरवालों को मनाना कठिन था मगर ऐसा मौका रोज नहीं मिलता पैरों में छाले हो गये हैं तो चप्पल पहनकर ही चल रहे हैं।
खैरा घाट और सांडिया के बीच में गांव सुरैल किशोर में यात्रा पहुंची है। मंदिर के पास के चबूतरे पर दिग्विजय सिंह बैठे हैं पसीना पोंछ रहे हैं लोग मिलने आ रहे है तो उनसे घर परिवार की बातें कर रहे हैं। यात्रा में चलने वाले रामभरोसे का ये गांव है उसकी बेटी मिलने आयी है ये बात पता चलते ही दिग्विजय सिंह उसे बुलाते हैं सर पर हाथ फेरते हैं और कहते हैं इनकी चिंता नहीं करना अब ये हमारे साथ हैं अच्छा भला घर छोडकर जायेंगे। चबूतरे पर पिछले दिनों हुयी नमामि देवी नर्मदे के नारे लिखे हैं जिसमें किनारों पर वृक्ष लगाने की बात लिखी है दिग्विजय सिंह ये नारे पढकर पूछते हैं भैया कहीं लगे हैं वृक्ष और फिर सब हंस पडते हैं….उनसे आस पास के कांग्रेस के पुराने नेता मिलने आ रहे हैं और अपनी नयी पीढी से मिलवा रहे हैं। नीखरा कहते हैं ये यात्रा अच्छी है कोई बुलौआ नहीं है फिर भी सैकडों लोग अपने परिवार के साथ मिलने आ रहे हैं। चाय पीने के बाद फिर चल पडती है यात्रा। नर्मदा शांत गति से बह रही है तो रेत भरे रास्तों पर ये दिग्विजय तेज कदमों से चल रहे हैं उधर एक उंचे मिटटी के ढेले से उनका पैर टकराता है और वो थोडा लडखडाते हैं तो पीछे से उनकी पत्नी अमृता की चिंता भरी आवाज आती है देखिये संभल कर। दिग्विजय पीछे मुडकर हंसते हैं और चल पडते हैं।
शाम होने को है आकाश का रंग बदल रहा है और दिग्विजय को याद आती है अपने कैमरे की। बैग से निकोन का कैमरा निकाल कर कुछ फोटो लेते है तो साथ चलने वाले याद दिलाते हैं सर उस तरफ देखिये डंपर से रेत निकाली जा रही है। दिग्विजय हंसते हुये कुछ फोटो खींचते है और बढ जाते हैं। रास्ते में वो बताते हैं कि इन दिनों ज्यादा धार्मिक हो गया हूं पिछले दिनों गीता के तीन टीकाएं पढीं हैं कुरान बाइबिल भी पढ ली है और अब नर्मदा पुराण का पाठ कर ही निकलता हूं। तो क्या ये राजनीति से वानप्रस्थ की ओर का प्रस्थान है अरे नहीं। इस यात्रा के बाद फिर निकलूंगा मध्यप्रदेश की गलियों में लोगों को निकालूंगा और ऐसी ही यात्रा करूंगा गली गली। क्या सुन रहे हैं शिवराज,,,
ब्रजेश राजपूत,
एबीपी न्यूज,
भोपाल

Leave a Reply

error: