टिप्पणी : गोपाल वाजपेयी
धन रहै ना जोबन रहै, रहै ना गाम ना धाम,
कबीर जग मे जश रहै, कर दे किसी का काम।
अर्थात : धन, यौवन, संपत्ति, जमीन कुछ भी नहीं रहता। सभी क्षणिक व नाशवान हैं। केवल यश रह जाता है, यदि आपने किसी की भलाई की हो।
महाभारत में अर्जुन पुत्र अभिमन्यु भले ही चक्रव्यूह नहीं भेद पाया हो, लेकिन उज्जैन का सात साल का मासूम अभिमन्युु चक्रव्यूह भेदने को तैयार है। उसकी कामयाबी के लिए पूरा शहर दुआ कर रहा है। शहरवासी दिल खोलकर मदद भी कर रहे हैं। दूसरी कक्षा के छात्र अभिमन्यु जायसवाल की आठ माह पहले तबियत खराब हुई। जांच में पता चला कि उसे ल्यूकोमिनिया कैंसर है। यह बीमारी लाखों में किसी एक को होती है। केबल ऑपरेटर के यहां सिर्फ छह हजार रुपये की नौकरी करने वाले अभिमन्यु के पिता ने साहस नहीं खोया। उसका इलाज मुंबई के अस्पताल में कराया। इस दौरान घर गिरवी रख दिया। कर्जे ने घेर लिया।
फिर पिता के लिए यह खबर राहत लेकर आई कि बेटा कैंसर की गिरफ्त से बाहर आ गया। लेकिन यह खुशी ज्यादा देर नहीं टिक पाई जब पिता को पता लगा कि कैंसर की दवाओं ने बेटे को दूसरी गंभीर बीमारी ने घेर लिया। कैंसर के दौरान दिए गए कीमो व अन्य दवाओं के कारण उसका बोन मेरो खराब हो गया। डॉक्टर्स ने जितनी जल्दी हो सके, बोन मेरो ट्रांसप्लांट कराने की सलाह दी। अभिमन्यु की बहन ११ वर्षीय गरिमा अपना बोन मेरो भाई को डोनेट करने को तैयार है, लेकिन जब इसका खर्च पिता ने सुना तो होश उड़ गए।
इंदौर के अपोलो अस्पताल में इलाज कर रहे डॉक्टरों ने इस पर होने वाला खर्च १५ लाख रुपये बताया। पहले ही अपना घर गिरवी रख चुके और चारों ओर से कर्ज में घिरे अभिमन्यु के पिता अब हिम्मत हारने लगे। ऐसे संकट के समय पत्रिका फिर हमराह बना। सामाजिक सरोकार में हमेशा अग्रणी भूमिका निभाने वाले पत्रिका ग्रुप ने अभिमन्यु को चक्रव्यूह से बाहर निकालने का बीड़ा उठाया। इस नेक कार्य में शहरवासी स्वत: स्फूर्त सामने आने लगे। ऐसे में एक शायर की ये पंक्तियां प्रासंगिक हैं कि-
चलता रहूंगा मंै पथ पर, चलने में माहिर बन जाऊंगा,
आगे मंजि़ल मिलेगी या अच्छा मुसाफिर बन जाऊंगा।
पत्रिका के आह्वान पर शहर में कई स्थानों पर चेरिटी शो हो रहे हैं। कैंप लगाए जा रहे हैं। शहर के सामाजिक व धार्मिक संगठन कार्यक्रम आयोजित कर अभिमन्यु के लिए राशि एकत्र कर रहे हैं।
अभिमन्यु के लिए युवाओं की टोली राहगीरों मदद राशि मांग रही है। यह देखकर सुखद आश्चर्य हो रहा है कि राहगीर भी रुकते हैं, मामले को समझते हैं और फिर अपनी जेब की क्षमता के अनुसार मदद कर रहे हैं। इस दौरान कई दृश्य ऐसे भी सामने आए जब कार सवारों ने दानपेटी के लिए अपनी पूरी जेब खाली कर दी। लोग दान राशि देने के अलावा बाबा महाकाल से अभिमन्यु के जल्द ठीक होने की प्रार्थना भी कर रहे हैं। अब तक छह लाख रुपये जमा हो चुके हैं।
लेकिन ये राशि इलाज के लिए पर्याप्त नहीं है। इसलिए शहरवासियों को इस पुण्य कार्य में और हाथ बंटाने की जरूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि चार से छह दिन में यह राशि दस लाख तक पहुंच जाएगी और अभिमन्यु इस चक्रव्यूह को भेदकर विजेता बनकर निकलेगा।