हे महाकाल !

टिप्पणी : गोपाल वाजपेयी

विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर द्वादश ज्योर्तिलिंग मंदिर दलालों के चंगुल में है। यहां कदम-कदम पर दलाल सक्रिय हैं। मंदिर के गेट से लेकर गर्भगृह तक पूरा रैकेट सुनियोजित तरीके से अपना काम कर रहा है। रैकेट ने वीआईपी दर्शन, सभी प्रकार के अभिषेक व अनुष्ठान से लेकर भस्मआरती में बैठक व्यवस्था के रेट तय कर रखे हैं। इस पूरी प्रक्रिया में हर किरदार का हिस्सा भी तय रहता है। हालांकि इन सभी काम के लिए मंदिर प्रबंधन समिति के काउंटर पर सशुल्क रसीद कटवाने की व्यवस्था है। लेकिन ये काउंटर सिर्फ औपचारिकता के लिए है। क्योंकि दलालों की एबीसीडी यहीं से शुरू होती है। ये रैकेट कैसे काम करता है? कैसे भक्तों को अपने जाल में फंसाता है? ये जानने के लिए ज्यादा दूर जानने की जरूरत नहीं। सिर्फ इस सप्ताह के रविवार व सोमवार के दृ्श्यों पर नजर डालते हैं-
दृश्य-१ : दिन सोमवार, रात्रि २ बजे। भस्मआरती के लिए पास लेकर लाइन में खड़े दर्शनार्थी। परंपरा के अनुसार बदन में सिर्फ धोती और हाथ में जलाभिषेक के लिए सामग्री। दो से ढाई घंटे में लाइन में इंतजार। अगल-बगल से निकल रहे कुछ विशेष प्रकार के भक्त दलालों के आगे-पीछे तेज रफ्तार से मंदिर के गर्भगृह की ओर जा रहे हैं। दो घंटे से लाइन में लगे लोग माजरा समझ जाते हैं। इनमें से कुछ लोग हल्का शोर करते हैं और शांत हो जाते हैं। इस उम्मीद में कि देर से ही सही, बाबा महाकाल को जलाभिषेक करने की मुराद पूरी होगी। लेकिन ये क्या? उनकी लाइन कहां से तोड़ दी गई? कहां से प्रवेश करा दिया? अब तो भस्मआरती शुरू होने वाली है। सब बैठ गए, जिसे जहां जगह मिली। कुछ लोग दलालों से सवाल पूछ रहे थे। उन्हें जलाभिषेक करने को कब मिलेगा? जवाब मिला-भस्मआरती के बाद। लेकिन भस्मआरती के बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।
दृश्य-2 : दिन सोमवार। दोपहर १२ बजे। भोपाल से आया एक परिवार २५० रुपये के विशेष दर्शन काउंटर पर पहुंचा। काउंटर पर तैनात कर्मचारी से तीन टिकट मांगे। कर्मचारी ने उन्हें बताया कि अभी टिकट नहीं निकल रहे। मैं एक पंडितजी को बुलाता हूं। उसे आप २१०० रुपये दे दें। वह आपको सीधे गर्भगृह में ले जाएंगे और अभिषेक-पूजन भी करा देंगे। वैसे भी आपको टिकट ७५० रुपये की पड़ेगी और दर्शन भी इतने दूर से होंगे कि आपको बाबा महाकाल की झलक भी ठीक से नहीं दिखेगी। पति-पत्नी ने आपस में थोड़ा सलाह-मशविरा किया और कर्मचारी से अंतत: १५०० रुपये में बात बन गई।
ृदृश्य-३ : दिन रविवार। रिटायर्ड डीएसपी ने सत्कार कक्ष में पहुंचकर शिकायत की कि उन्होंनेे मंदिर समिति कार्यालय में फोन कर महामृत्युंजय जाप के बारे में जानकारी ली। फोन पर कर्मचारी ने उन्हें एक पुरोहित का नंबर दिया। उन्होंने पुरोहित से बात कर उसके बताए एकाउंट में १५ हजार रुपये ट्रांसफर कर दिए। रविवार को जब वह मंदिर में जाप कराने पहुंचे तो न तो वह पुरोहित मिला और न ही उनका फोन लग रहा। लेकिन शिकायत को सत्कार कक्ष में तवज्जो नहीं दी गई। रिटायर्ड डीएसपी समझ गए कि उनके साथ ठगी हुई है।
ये तीन दृश्य यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि महाकाल मंदिर में श्रद्धालुओं के साथ क्या व कैसे बर्ताव होता है ? ये सिर्फ एक या दो दिन की बात नहीं है… रोजाना ही ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं। श्रावण मास में भस्मआरती, अनुष्ठान, जलाभिषेक व वीआईपी दर्शन में व्यापक स्तर पर लेनदेन होता है। इस माह में पूरा रैकेट मालामाल हो जाता है। श्रावण मास में भस्मआरती के एक टिकट की कीमत पांच हजार तक में ब्लैक होती है। अगर सावन सोमवार है तो ब्लैक में यह कीमत और ज्यादा हो जाती है। श्रावण मास में भस्मआरती के टिकट ब्लैक में सप्लाई करने का ही नतीजा है कि तीन से चार घंटे लाइन में लगने के बाद कई श्रद्धालुओं को प्रवेश नहीं मिल पाता। वीआईपी दर्शन व अनुष्ठान के लिए बने काउंटर से कटी पर्ची रिकॉर्ड का मिलान अगर वास्तविक स्थिति से किया जाए तो दलाली की परतें निकल आएंगी।
देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालु जब बाबा महाकाल के दर्शन कर लेते हैं तो वे अपने को धन्य महसूस करते हैं। लेकिन में उनके मन में कसक सी उठती रहती है। वे खिन्न रहते हैं। जो भक्त गर्भगृह में जाकर दर्शन करते हैं वे भी और जो दूर से दर्शन करते हैं वे भी। जो भक्त जेब हल्की कर गर्भगृह तक पहुंच जाते हैं, वे स्वयं को भाग्यशाली समझते हैं। लेकिन मंदिर परिसर से बाहर निकलकर वे हैरत में पड़ जाते हैं और आपस में चर्चा करते हैं कि भगवान के दर पर और वो भी त्रिकालदर्शी के आंगन में ये क्या चल रहा है? क्या इंसान पैसों के लिए इतना गिर सकता है? और दूसरी तरफ वो भक्त हैं जो मंदिर की अव्यवस्था को लेकर दुखी हैं। वे जेब हल्की न कर पाने के कारण ठीक तरीके से बाबा महाकाल के दर्शन भी नहीं कर पाते। और इन सबसे अलग वह रैकेट हैं जिसके सामने आस्था, श्रद्धा, भक्ति और भावनाएं कोई मायने नहीं रखतीं। जिसके नाम से काल भी डरकर भाग जाता है, उस महाकाल के परिसर में इस प्रकार की अनैतिक गतिविधियां बयां कर रही हैं कि इंसान पैसों की खातिर कैसे अंधा हो जाता है। रैकेट की इन सभी गतिविधियों से मंदिर प्रबंधन समिति भलीभांति वाकिफ है। श्रद्धालुओं से धक्का-मुक्की व बदसलूकी की शिकायतें भी लगातार हो रही हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। जिला प्रशासन ने यहां की व्यवस्था की निगरानी करने के लिए दो प्रशासनिक अधिकारियों को तैनात कर रखा है। किसी भी गड़बड़ी के लिए ये दोनों अधिकारी जिम्मेदार हैं। लेकिन ये दोनों अधिकारी मीडिया को हमेशा एक ही जवाब देते हैं-मुझे इस मामले की जानकारी नहीं। ऐसे में सवाल उठता है कि जब किसी मामले की जानकारी ही नहीं रखते तो इस जिम्मेदारी से मुक्त क्यों नहीं हो जाते…। मंदिर प्रबंधन समिति इस रैकेट को नहीं छेड़ सकती, क्योंकि यह स्वयं सवालों के घेरे में है। महाकाल मंदिर में हुए सफाई घोटाले को लेकर मंदिर प्रबंधन समिति के हाथ-पैर फूले हुए हैं। मामले को दबाने के लिए भरसक जतन किए गए, लेकिन मामला गरमा रहा है। ऐसे में महाकाल मंदिर की व्यवस्था में सुधार की उम्मीद दूर-दूर तक नहीं दिखती। यह देखकर भी आश्चर्य होता है कि शहर के जनप्रतिनिधियों को इन गड़बडिय़ों के भलभांति जानकारी है, फिर भी वे खामोश हैं। इसीलिओ किसी शायर ने खूब कहा है-
यहाँ सब खामोश है कोई आवाज़ नहीं करता,
सच बोलकर कोई किसी को नाराज़ नहीं करता।
लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि-
दिल की खामोशी पर मत जाओ, राख
के नीचे अक्सर आग दबी होती है…

“लेखक वरिष्ठ पत्रकार है – उज्जैन चर्चा”

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