इस बार टमाटर को पाकिस्तान से भी जुत्ता पडा है,,,,

टेलीविजन की कुछ कहानियां एकदम मौसमी हो गयीं हैं। यानिकी पिछली बार मौसम आया था तो वही हुआ जो अब हो रहा है। ये मौसमी कहानियां अगर किसानों से जुडीं हों तो बहुत दुख भी होता था। ये सोच कर कि पिछली बार भी यही दर्द भरी कहानी की थी अब फिर यही करना पड रहा है। पिक्चर फ्रेम दर फ्रेम कहानी वही होती है। किसानों के संवदेनशील सरकार के दावे के बाद भी किसानों की मुसीबत की कहानी में कोई बदलाव नहीं।
ये किस्सा रायसेन का है। रायसेन के साथी विजय राठौर ने वीडियो भेजा था जिसमें एक टैक्टर ट्राली से टमाटर भरकर फेंके जा रहे है जानवरों के सामने। वीडियो देखने के बाद मैंने यही कहा यार ऐसी स्टोरी पिछले साल भी तो की थी क्या फर्क है इस बार। उधर से जबाव मिला कि इस बार पिछली बार के मुकाबले हालत बहुत ज्यादा खराब हैं। किसानों को बहुत घाटा हुआ है क्योंकि पिछली बार टमाटर के रेट आसमान छूने पर इस बार टमाटर प्रदेश में ज्यादा लगाया गया है। मगर बदकिस्मती की मार देखिये कि इस बार टमाटर के रेट फिर से ज्यादा होने की जगह कम हो गये हैं। किसानों को खेत से टमाटर की तुडायी और ढुलायी का पैसा नहीं निकल पा रहा है। गांवों में फेंके गये टमाटरों के ढेर हर ओर दिखेंगे।
बस फिर क्या था घंटी बजाओ के लिये स्टोरी तय होते ही हम निकल पडे केवलाझिर गांव की ओर जो रायसेन ओर सिहोर की सीमा की पहाडी की तलहटी पर बसा गांव है। इस गांव के पास से ही लग जाता है शिवराज सिंह की विधानसभा बुधनी के बकतरा, जैत और शाहपुर सरीखे वीआईपी गांव। खैर रायसेन से बकतरा करीब ढाई घंटे चलने के बाद केवलाझिर गांव के रास्ते में घुसते ही खाली क्रेट ले जाने वाले कुछ छोटे लोडर टक दिखे और दिखे रास्ते के दोनों तरफ उगायी हुयी टमाटर की बंपर फसल। टमाटर के खेतों में मजदूर दिख रहे थे जो टमाटर के क्रेटों में भर भरकर टमाटर तोड रहे थे। बताया गया कि इस गांव में कई साल पहले केंद्र की सरकार ने हरियाणा के एक्स आर्मी मैन को बसा दिया गया था जिनकी संतानें अब इस उपजाउ मिटटी पर बडी मेहनत से नये तरीके से खेती करते हैं। परंपरागत खेती को छोड ये सब नये जमाने की फसलें उगाते हैं। पिछले कुछ सालों से आसपास के गांवों में टमाटर लगाया जा रहा है। इस बार यहां करीब एक लाख हेक्टेयर में टमाटर लगा है जो अचानक तेज गर्मी पडने से एकदम से पूरा पक गया है और ये पका टमाटर ही किसान के चेहरे का पानी उतार रहा है। हम पहुंचे सुनील मलिक के खेत में जिनके खेत पर क्रेटों में भरकर टमाटर रखा था और लाल सुर्ख टमाटरों को क्रेटों से हटाया जा रहा था। सुनील बताते हैं कि सर ये लाल टमाटर व्यापारी नहीं ले जाते। इनको हरे और कडे टमाटर चाहिये जिससे ये इसको कई दिन तक रख सकें। पिछली बार के अच्छे भाव को देखते हुये इस बार बीस एकड में टमाटर लगा लिये जिसपर करीब पंद्रह लाख रूप्ये खर्च हो गये। शुरूआत के कुछ दिनों में अच्छे दाम मिले मगर अब तो आलम ये है कि टमाटर तुडवायी और बाजार तक की ढुलाई के पैसे जेब से देने पड रहे हैं। व्यापारी इस बार आये ही नहीं है टमाटर खरीदने जो खरीदने आये हैं वो औने पौने दाम पर टमाटर खरीद रहे हैं। यहां आये व्यापारी पच्चीस से तीस रूप्ये में एक क्रेट टमाटर जिसमें पच्चीस किलो टमाटर होते हैं खरीद रहे हैं। यानिकी एक रूप्ये प्रति किलो से लेकर डेढ रूप्ये किलो तक खेत से ही बिक रहा है। चंडीगढ से आये हैं व्यापारी रमेश चंद्र, हंस कर कहते हैं भाई इन सब किसानों से दोस्ती है इसलिये माल ले जा रहा हूं। वरना वहां से फोन आ रहे हैं सब कुछ लाना टमाटर नहीं लाना क्योंकि आगे कोई उठाव नहीं है माल का। मगर ऐसा अचानक क्या हो गया जो टमाटर बेभाव हो गया है, रमेश फिर अपनी पंजाबी मिली हिंदी में खुलासा करते भाई इस बार टमाटर को पाकिस्तान से भी जूत्ता पडा है। हर रोज पहले पचास से सौ गाडियां पाकिस्तान जातीं थीं मगर मार लो एक दूसरे को तो अब बार्डर से माल जाना बंद है। वहां टमाटर तीन सौ रूप्ये किलो है हम तीस रूप्ये भी उनको नहीं बेच पा रहे। हम व्यापारी क्या किसानों से खरीदें और ये किसान क्या हमें बेंचे। लोकल बाजार में कितना बेचोगे बेच लो। एक्सपोर्ट बंद पडा है। हमने सुनील से कहा लोकल बाजार में जमकर बेचो टमाटर तो सुनील की सुनो। कहा कि यहां से एक क्रेट भोपाल तक का भाडा ही 27 रूप्ये है। उस पर वहां पर पांच रूप्ये कमीशन हो गया बत्तीस रूप्ये क्रेट मगर बाजार में बिक रहा है बीस से पच्चीस रूप्ये प्रति क्रेट अब हर रोज कितना घाटा खा खाकर माल भोपाल में भेजेंगे इसलिये यही ठिकाने लगा देते हैं। यहां नहर हैं यहां पर टमाटर डाल देते हैं नही तो बहुत सारे ग्राउंड है जहां बच्चों जैसे पाले टमाटर डाल देते हैं मवेशी खा लेते हैं। रही बात घाटे की तो इस बार तो अच्छा खासा गंवाना है हमको। फिर क्या हो जिससे आपकी मेहनत मवेशी को जाया ना हो। इसका जबाव देते हैं योगेश द्विवेदी जो किसान उत्पादकों का संगठन चलाते हैं उनका कहना है कि जब तक इस इलाके में प्रसंस्करण यूनिट नहीं लगेगी किसानों की बागवानी वाली फसलों के साथ ऐसा ही होगा। हैरानी की बात ये है कि प्रदेश में टमाटरों से पेस्ट या कैचप बनाने वाली कोई ठीक ठाक यूनिट नहीं लगी है। फिर चाहे वो इलाके सीएम के गांव और विधानसभा के ही क्यों ना हो। किसानों की बहुतायत से आयी फसल के लिये किसान यूं ही आंसू बहायेंगे और अपनी फसल जानवरों को खिलायेगे। ये मौसमी कहानी थी मगर भगवान ना करे ये कहानी अगले साल फिर करनी पडे।
ब्रजेश राजपूत,
एबीपी न्यूज,
( अखबार में ये कालम छपने के बाद फोन आया है भाईसाब अब प्याज पर लिखने को तैयार रहिये)

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