टिप्पणी : गोपाल वाजपेयी
बख्श देता है खुदा उसे , जिनकी किस्मत खराब होती है,
वो हरगिज नहीं बख्शे जाते, जिनकी नियत खराब होती है।
महाकालेश्वर मंदिर में व्यवस्थाएं लगातार बिगड़ती जा रही हैं। कदम-कदम पर हो रहीं गड़बडिय़ों को लेकर मीडिया के साथ ही शहर का प्रबुद्ध वर्ग महाकाल मंदिर समिति के पदाधिकारियों को लगातार आगाह कर रहा है। लेकिन हर स्तर पर व्यवस्थाएं बदतर होती जा रही हैं। दर्शन व्यवस्था में दलालों की मनमानी, पूजा-अनुष्ठान के नाम पर भक्तों से छल के कई मामले सामने आ चुके हैं। मनमाने निर्माण कार्य व बजट में मनमाने खर्च को लेकर उंगलिया उठ रही हैं। कुछ माह पहले तक मंदिर परिसर में चल रही दलाली ने दायरा बढ़ा लिया है। तड़के होने वाली भस्मारती की कालाबाजारी जोरों पर चल रही है। व्यापक स्तर पर ब्लैक में पास बेचे जा रहे हैं। इस मामले में पंडे-पुजारियों के साथ ही वहां के कर्मचारियों को शंका की नजर से देखना बेकार है। ये लोग खुद हैरान हैं। बात करने पर दर्द फूट पड़ता है। अप्रत्यक्ष रूप से बदनाम उन्हें होना पड़ता है। आंखें खोलने वाला सच यह है कि भस्मारती की दलाली के तार मंदिर परिसर से निकलकर कई होटल तक जुड़ गए हैं। रैकेट में सरकारी विभागों के कर्मचारी, नेताओं के छर्रे और कुछ कथित मीडियाकर्मी भी शामिल हैं। दूरदराज से महाकाल की भस्मारती की लालसा में आने वाले भक्तों से पास के एवज में दो हजार से पांच हजार तक वसूले जा रहे हैं। ये रेट घटते-बढ़ते रहते हैं। वीकएंड पर रेट दोगुने हो जाते हैं। श्रावण मास में भस्मारती पास के मुंहमागे रेट पर बिकते हैं। गर्भगृह के ठीक सामने नंदीगृह के रेट सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद गणेश मंडपम्, फिर कार्तिकेय मंडपम्। आमतौर पर नंदीगृह के अधिकांश पासधारकों को बाबा महाकाल के जलाभिषेक का अवसर मिल जाता है। नंदीगृह में बैठने वाले या तो वीवीआईपी होते हैं या फिर ज्यादा रेट में दलाली से पास लेने वाले। उधर, भस्मारती के पास के लिए सुबह आठ बजे से पांच बजे तक कतार में धक्के खाने वालों को इस बात का अंदाजा नहीं होता कि वे नाहक में पूरा दिन खराब कर रहे हैं। जिनके पास बनने थे, वो तो तीन दिन पहले तय हो चुके हैं। ऑफलाइन में कुछ कोटा खिड़की से पूरा करना होता है। यहां वही हो रहा है। अगर भक्त में हजार रुपये खर्च करने की ताकत, तभी यहां से पास मिलना संभव है। कहने के लिए भस्मारती की बुकिंग ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों माध्यम से हो रही है। लेकिन हकीकत इससे बहुत जुदा है। भस्मारती के लिए तीनों हॉल की क्षमता १६३५ लोगों की है। लेकिन रोजाना दो हजार से ज्यादा लोग भस्मारती के लिए प्रवेश करते हैं। ऑनलाइन का कोटा ४०० व ऑफलाइन का कोटा ६०० है। वीआईपी का कोटा ६०० का है। इसी वीआईपी कोटा में व्यापक स्तर पर दलाली चल रही है। कम से १५ सरकारी विभागों के एक से दो कर्मचारी पूरे दिन महाकाल मंदिर परिसर में घूमते रहते हैं। इनका काम अपने अफसरों व उनके रिश्तेदारों को कभी-कभी वीआईपी दर्शन कराना व भस्मारती के पास उपलब्ध कराना है। ये कर्मचारी लंबे समय से मंदिर परिसर में अघोषित ड्यूटी पर हैं। भस्मारती के रोजाना औसतन दस पास बनवाकर होटल कर्मचारियों की मदद से दलाली कर बेचना इनका लक्ष्य रहता है। इस बीच वीआईपी दर्शन, पूजा-अनुष्ठान में दलाली का अवसर भी नहीं छोड़ते। इसी तरह २० से २५ छर्रे राजनेताओं के इस गोरखधंधे में लगे हैं। कुछ नेताओं ने बाकायदा मंदिर प्रशासन को पत्र लिखकर अपने प्रतिनिधि मंदिर में तैनात कर रखे हैं। मंदिर प्रशासन पूरी तरह असहाय व लाचार है। दरअसल, मंदिर की पूरी व्यवस्थाओं को सियासत व वीआईपी संस्कृति ने जकड़ रखा है। मंदिर प्रशासन समिति इनके सामने घुटने टेके हुए हैं। एक शायर ने ठीक ही कहा है कि…
तू मुझे गुनहगार साबित करने की जहमत ना उठा,
बस ये बता कि दे क्या-क्या कुबूल करना है…
कुछ ऐसा ही हाल है समिति के जिम्मेदारों व मंदिर में तैनात अधिकारियों का। कई लोगों ने आरटीआई लगाकर प्रतिदिन भस्मारती के पास का ब्यौरा मांगा, लेकिन जवाब में लिख दिया जाता है कि इसकी जानकारी देना संभव नहीं है। मंदिर में दलाली व सियासत के गठजोड़ को खत्म करने की जिम्मेदारी मंदिर प्रशासन समिति, मंदिर से जुड़े विभिन्न संगठनों, राजनेताओं व शहर के प्रबुद्ध वर्ग की है। व्यवस्थाएं सुधारने के लिए इन्हें जल्द ही एक साथ बैठकर नियम-कायदों को सख्ती से पालन कराने के लिए ठोस तंत्र बनाना होगा।
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Tuesday, May 20, 2025