स्वर्ण और पिछड़ों की नाराज़गी भारी न पड़ जाए भाजपा को?

चुनाव विशेष विश्लेषण। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे वैसे वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए नए-नए वादे और कानून बनाए जा रहे हैं । इसका खामियाजा किसे कितना भुगतना पड़ेगा ? यह तो वक्त बताएगा..  किसे फायदा मिलेगा और कौन नुकसान में रहेगा?  यह जानने के लिए सभी को इंतजार करना पड़ेगा लेकिन जिस प्रकार स्वर्ण और पिछड़ा वोट बैंक भारतीय जनता पार्टी से नाराज चल रहा है,  उसकी नाराजगी ऐसे ही कायम रही तो आने वाले विधानसभा चुनाव के साथ-साथ लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है ।

अगर हम स्वर्ण और पिछड़ी जातियों द्वारा चल रहे आंदोलन की बात करें तो इसका सबसे ज्यादा असर मध्य प्रदेश राजस्थान उत्तर प्रदेश और बिहार में देखने को मिल रहा है। चारों राज्यों की सीटों पर आकलन किया जाए तो उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटें हैं । अगर उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन ठीक नहीं रहता है तो साल 2019 की राह आसान नहीं होगी।

इसके अलावा मध्यप्रदेश में और राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में 55 फ़ीसदी स्वर्ण और पिछड़ी जाति का वोट बैंक भाजपा के लिए परेशानी पैदा कर सकता है। इसके अलावा बिहार में भी अगड़ी जाति के लोग लगातार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग उठा रहे हैं ।

इसके अतिरिक्त सपाक्स और करणी सेना जैसे ताकतवर संगठन खुलकर एट्रोसिटी एक्ट का विरोध कर रहे हैं । इन परिस्थितियों में भाजपा कि मुश्किल कम होने का नाम नहीं ले रही है । गौरतलब है कि 9 अगस्त को ऐसा कानून बनाया है जो स्वर्ण जाति के लोग एक्सेप्ट करने को तैयार नहीं है।

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