जारी है पंकज का ‘जुर्म ए उपन्यास ‘ जिस पर नाज है.
ये हमेशा मुश्किल होता है एक सफलता के बाद दूसरी और फिर तीसरी की तलाश करना। इसको ऐसे कहें कि अपने पहले टेस्ट में शतक बनाने वाले क्रिकेट खिलाडी बहुत हैं कुछ दूसरे में भी बनाने वाले मिल जायेंगे मगर लगातार अपनी जिंदगी के तीसरे टेस्ट में शतक बनाने वाले तो हमारे कप्तान मोहम्मद अजहरूददीन ही हुये है। तभी अपन को आज तक याद हैं। अपने रिटायरमेंट के बाद आज अजहरूददीन इसलिये याद आ रहे हैं कि टेबल पर रखी किताब जिन्हें जुर्म ए इश्क पर नाज था पढकर अभी हाल ही में खत्म की है और सोच रहा हूं कि लेखक पंकज सुबीर की तुलना अजहरूददीन से करूं या नहीं।
भोपाल के पास सिहोर में लंबे समय से चिमटा गाडकर लगातार लिख रहे पंकज सुबीर किसी परमाणु बिजली घर से कम नहीं हैं जो अपनी चकाचौंध से अपने कस्बे सिहोर और अपने साथियों को रोशनी देते रहते हैं। यूं पंकज का पहला उपन्यास ‘ये वो सहर तो नहीं ‘ 2009 में आया था और सिहोर की सच्ची घटना पर ही आधारित था। जिसमें सिहोर के इतिहास और आज के हालात को बेहतरीन तरीके से बुना गया था। सिहोर में कलेक्टर का बंगला और नबावकालीन अंग्रेजों के रेजीडेंट का निवास एक ही था और पूरा उपन्यास कभी अंग्रेज कालीन रेजीडेंट की ज्यादतियां दिखाता तो कभी आज के जमाने के काले अंग्रेजों या प्रशासनिक अफसरों के कामकाज करने के तरीकों और उससे होने वाली जनता की परेशानियों को सामने लाता। पाकिस्तानी शायर फैज की प्रसिद्व नजम से शीर्षक लेकर लिखा ये उपन्यास ये वो सहर तो नहीं उपन्यास पढते हुये ‘रंग दे बसंती’ फिल्म का अहसास देता था। जिसमें परतों में दो कहानियां एक साथ बह रहीं होती है। मेरी मुलाकात के वक्त तक पंकज ये उपन्यास लिख चुके थे और उन दिनों पंकज पत्रकारिता में भी सक्रिय थे। खबरों की आनलाइन एजेंसी भी चलाते थे और मुझे सिहोर की रोचक कहानियां बताते थे। इसका असर ये हुआ कि पंकज की कुछ कहानियां टीवी रिपोर्टर के कामकाज के अबूझ से तरीकों पर भी बना दी गयीं। जिसे पढकर कभी हम नाराज हुये तो कभी खूब हंसे। मगर पंकज का पत्रकार जब पूरा विकसित हुया तो किसानों की आत्महत्याओं पर बेजोड उपन्यास सामने आया ‘अकाल में उत्सव’ इस उपन्यास में किसानों की कठोर जिंदगी जिसमें प्रकृति और प्रशासन की दोहरी मार पडती है उसका ऐसा चित्रण किया कि लगा कि सिहोर के पास के गांव में किसी परिवार की आप पूरे वक्त मीठी मालवी सुनते हुये घूम रहे हो और जब गांव के उस परिवार के कभी ना खत्म होने वाले दुख से मन भर आता हो तो उसके बाद सिहोर के कलेक्ट्रेट यानिकी कलेक्टर के दफतर में चलने वाली राजनीति के आप हिस्से हो जाते हो। कलेक्टर की कोटरी की पंचायत और कलेक्टर की हर हाल में जय बोलने वाली प्रशासनिक अफसरों की जमात के दांवपेंच बहुत करीब से इस उपन्यास में दिखते हैं तब हम शहर में बैठे लोगों को तब पता लगता है कि जिले में प्रशासन या सरकार कैसे चलती है। लंबे समय बाद किसी ने गांव के किसान की जानलेवा परेशानियां तथा कर्ज में डूबे किसान की आत्महत्या का इतने मार्मिक तरीके से जिक्र किया। नतीजा ये रहा कि 2016 में आये इस उपन्यास के ढाई साालों में ही दस संस्करण छप गये और कई एमफिल और पीएचडी का ये हिस्सा भी हो गया। मशहूर व्यंग्यकार डा ज्ञान चतुर्वेदी ने इस उपन्यास के बारे में कहा था कि ये उपन्यास क्लासिक बनते बनते बडे करीब से चूक गया। तो अब चुनौती फिर एक दफा क्लासिक रचने की थी और पंकज तीन साल की मेहनत के बाद लेकर आये हैं फिर फैज की नज्म से लिये शीर्षक जिन्हें जुर्म ए इश्क पे नाज था। आमतौर पर अब उपन्यास के कंटेंट से ज्यादा कवर पर मेहनत की जाती है मगर पंकज यहंा उल्टे चले। आगे पीछे के काले कवर के कलेवर वाले इस उपन्यास में हमारी सभ्यता की वो काली सच्चाईयां हैं जो किसी ना किसी रूप में आज भी जारी हैं। ये कडवी सच्चाई है धर्म से जुडी हुयीं। इस उपन्यास का सार यही है कि अब तक दो विश्वयुद्वांे में लोगों की जितनी जानें नहीं गयीं होगीं उससे कई गुना ज्यादा लोग धर्म से जुडे क्रुसेड या धर्म के लिये की गयी लडाईयों में मारे गये हैं और मारे जा रहे हैं। धर्म की रक्षा से जुडे इस युद्वों और झगडों में जान गंवाने के बाद मजे की बात ये है कि सारे धर्माें का सार या कहानियां बहुत मिलती जुलती हैं। पंकज ने सिहोर के सांप्रदायिक तनाव की पृष्ठभूमि में सांप्रदायिक सदभाव की कहानी बुनी और सभ्यता की शुरूआत से शुरू हुये सारे धर्माें की सारगर्भित बात से लेकर भारत पाकिस्तान के बंटवारे की सच्चाई भी आसान ओर सरल शब्दों में उकेर कर रख दी। यहूदी, ईसाई, मुसलमान, पारसी और हिन्दु धर्मों के इतिहास उनकी समानताएं और विवाद कहानी के साथ साथ चलते हैं और धर्म क्यों इतना प्रिय और क्यों इतना जानलेवा है ये इस उपन्यास को पढते पढते पाठक आसानी से समझ जाता है। पंकज ने कथानक पर मेहनत करने के साथ साथ धर्माें के इतिहास को जिस तरह से खंगाला है वो इस मायने में सार्थक है कि इन सारे धर्मों का इतिहास मान्यताएं एक जगह पढने को है। इश्क मोहब्बत की कहानियां लिखने वाले पंकज ने धर्म के बर्र के छत्ते में हाथ डालकर साहस का परिचय दिया है वो लीक से हटकर चले हैं। फैज की लाइनें इस प्रकार हैं
“न रहा जुनून ए रूख ए वफा ये रसन ये दार करोगे क्या,
जिन्हें जुर्म ए इश्क पे नाज था वो गुनहगार चले गए,,
तो पंकज ने गुनाह तो कर दिया है मगर पाठकों को इस उपन्यास पर नाज होगा ये हम मानते है। लगातार तीन अच्छे उपन्यास लिखकर मेरी नजर में अजहरूद्दीन तो वे बन ही गये हैं।
ब्रजेश राजपूत
एबीपी न्यूज
भोपाल