किसान बेहाल: यह राजनीति नहीं तो क्या हमदर्दी?

उज्जैन चर्चा टीम। एक समय था जब विकास के मुद्दों पर राजनीति होती थी.. लेकिन वर्तमान समय में राजनीति के लिए आरोप और प्रत्यारोप प्रमुख मुद्दे हैं। जहां सत्तारूढ़ पार्टी पर विपक्ष गंभीर आरोप लगाता है, वहीं विपक्ष के आरोपों को लेकर सत्तारूढ़ पार्टी हमेशा सफाई देती रहती है । राजनीति अब केवल जनहित के मुद्दों पर ही नहीं होती है बल्कि मौसम भी राजनीति का मिजाज बदल देता है। वर्तमान समय में मध्यप्रदेश के कई जिले बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं । इसके अलावा किसानों के हाल बेहाल है। मध्य प्रदेश के अधिकांश जिलों में किसानों की फसलें चौपट हो चुकी है । अब यहां से राजनीति का एक नया अध्याय शुरू होता है। देखिए खास रिपोर्ट।

मध्यप्रदेश में बारिश ने पिछले 120 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। बारिश के कारण जहां एक तरफ किसानों की फसलें चौपट हो गई है। वहीं दूसरी तरफ बाढ़ पीड़ित जिलों में लोगों का भारी नुकसान हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक बारिश की वजह से पूरे मध्यप्रदेश में बाढ़ पीड़ित लोगों का लगभग 500 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है। दूसरी तरफ अगर किसानों की बात की जाए तो यह अनुमान लगाना भी मुश्किल है कि किसानों को अगली फसल भी सही सलामत मिल पाएगी? यहां भी अनुमान की बात की जाए तो यह आकलन किया जा सकता है कि पूरे मध्यप्रदेश में किसानों को लगभग ₹10000 का नुकसान हुआ है । नुकसान की भरपाई करना तो ठीक.. राजनीति घड़ियाली आंसू बहाने में लग गई है । एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी के नेता मुआवजे की मांग को लेकर जिले में घूम-घूम कर किसानों की सहानुभूति बटोर रहे है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस नेता भी प्रशासन के माध्यम से नुकसान का आकलन करवा रहे हैं ।

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अचानक सक्रिय हो गए हैं । वे मध्य प्रदेश के अलग-अलग जिलों में घूमकर किसानों की फसलों का जायजा ले रहे हैं । इसके अलावा कमलनाथ सरकार से मुआवजे की मांग कर रहे हैं। यह बात अलग है कि जब श्री चौहान मुख्यमंत्री थे उस समय कई बार फसलें चौपट हुई जिसका मुआवजा आज तक नहीं मिल पाया है । पूर्व मुख्यमंत्री जोर-जोर से किसानों के मुआवजे की मांग करते हुए कमलनाथ सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं । यह भी दुहाई दी जा रही है कि किसानों की मदद नहीं की गई तो आने वाला वक्त किसानों के लिए बहुत बुरा रहेगा।

बाढ़ के बाद राजनीति की शतरंज बीछ चुकी है। भारतीय जनता पार्टी के नेता किसानों से के हित में खड़े हो रहे हैं। हालांकि मध्य प्रदेश के कई जिलों में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों का भी जमकर विरोध हो चुका है। मंदसौर की बात की जाए तो यहां भी भाजपा के विधायकों को बाढ़ पीड़ित लोगों ने मौके से रवाना कर दिया। आरोप है कि भाजपा विधायकों ने भी सही समय पर पीड़ित लोगों की मदद नहीं की और बाढ़ को लेकर राजनीति कर रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस की बात की जाए तो जिला प्रशासन के माध्यम से फसलों का नुकसान ही आकलन किया करवाया जा रहा है । यह आकलन कब तक पूरा होगा और सर्वे रिपोर्ट कब आएगी ? इसका किसी को पता नहीं है ।

दूसरी तरफ किसानों से बीमा कंपनी ने करोड़ों रुपए वसूल लिया है।  बीमा कंपनी भी किसानों के प्रति संवेदनशील नजर नहीं आ रही है। यही वजह है कि आने वाले समय में किसानों को कितना मुआवजा मिल पाएगा? इसका कोई उचित जवाब नहीं मिल पा रहा है। यह बात अलग है कि कांग्रेस 15 साल बाद सत्ता में आने की वजह से किसानों और बाढ़ पीड़ितों के लिए अधिक सक्रिय दिखाई दे रही है।  मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी केंद्र सरकार के पाले में गेंद डालकर ₹10000 की मदद मांगी है । अगर मध्य प्रदेश के सांसद और भाजपा के विधायक केंद्र सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करवाते हैं तो संभवत आने वाले समय में बाढ़ पीड़ित लोगों को मदद मिल सकती है, लेकिन फिलहाल बाढ़ की आड़ में राजनीतिक रोटियां ही सेकी जा रही है । मदद के लिए सब एक दूसरे की ओर टकटकी लगाकर देख रहे हैं । कमलनाथ सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि केंद्र सरकार अगर मदद नहीं करेगी तो किसानों को कोई चिंता करने की आवश्यकता नहीं है सरकार उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहेगी।

वर्तमान राजनीति का भविष्य आने वाला समय ही तय करेगा लेकिन फिलहाल बाढ़ को लेकर हो रही राजनीति से पीड़ित लोग और किसान बेहद नाखुश है।

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