अब क्या होगा भोलेशंभू नीलकंठ..

भोपाल/उज्जैन। हम सबके साथ अक्सर यही होता है कुछ बातें जानते हैं पर मानते नहीं। हमे मालुम है इससे नुकसान होगा मगर हम उसका उपयोग करना नहीं छोडते। हाल का मामला उज्जैन के महाकालेश्वर के शिंवलिंग को पूजा सामग्रियों से होने वाले नुकसान का है। सुप्रीम कोर्ट में लगी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद जीओलाजिकल सर्वे आफ इंडिया और आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के विशेषज्ञो की टीम ने महालेश्वर मंदिर का दौरा कर शिवलिंग में हो रहे संभावित क्षरण पर रिपोर्ट सौंपी है। ये रिपोर्ट क्या है और क्या हो होने जा रहा है जब इस पर रिपोर्ट करने को कहा गया तो एक बार फिर उज्जैन जाना हुआ और मंदिर और शिवलिंग को नयी नजर से देखने का मौका मिला।
उज्जैन के बीच शहर में बना महाकालेश्वर का मंदिर यूं तो सदियों पुराना है मगर मंदिर का ये वर्तमान स्वरूप मराठा राजाओं का दिया हुआ है। आक्रमणकारियों ने इसे कई बार नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी है मगर इन दिनों इस मंदिर का शिवलिंग एक नये प्रकार के आक्रमण से दो चार हो रहा है। इसी की जांच करने सुप्रीम कोर्ट के दखल देने पर वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की टीम आयी थी। मंदिर में माइक कैमरा लेकर घुसते ही पंडे पुजारी और कर्मचारियों की नजर में यही समझ आ रहा था कि शिवलिंग की कहानी करने आये हैं हम..हमेशा की तरह साफ सुथरे महाकाल मंदिर में गर्भगृह में भक्तों की भीड उमडी पडी थी। हर व्यक्ति महाकाल के शिवलिंग को भरपूर देखना और थोडा वक्त मिले तो छूना चाहता था। जय महाकाल जय महाकाल ने नारों के बीच पंडे पुजारी अपने अपने यजमानों के पूजा पाठ और अभिषेक कराने में लगे हुये थे। हमें देखा तो तुरंत एक पुजारी ने माथे पर तिलक लगा दिया। उधर महाकाल का शिवलिंग जिसे बारह ज्योर्तिलिंग में खास स्थान मिला हुआ है चढावे के फूल और बेल पत्र से ढका हुआ था। दूध और पानी भी अनवरत चढाया जा रहा था। उधर हम थे कि अनवरत शिवलिंग को निहारे जा रहे थे। ये स्वयंभू ज्योर्तिलिंग ६७ सेंटीमीटर लंबा और ४८ सेंटीमीटर की परिधि वाला है और सैंकडों सालों से अपने भक्तों के लिये श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। करीब से देखने पर ये शिवलिंग अपनी अलौकिकता का अहसास तो कराता है मगर इस दक्षिणमुखी शिंवलिंग के पश्चिमी तरफ कई सारे गड्डे बने हुये हैं जिन पर दूध और दही अटका दिखता है। मुझे इस तरह से शिवलिंग कोनिहारते देख वहीं पास बैठे पंडित चंद्रप्रकाश शर्मा शिवलिंग की स्तुति करने लगते हैं और महात्म बताने लगते हैं मगर जब मैंने शिवलिंग पर उभरे उन गड्ढों के बारे में पूछा तो उनका जबाव था कि शिवलिंग पर उभरी पार्वती और गणेश जी के निशान हैं जो सालों से ऐसे ही बने हुये हैं इनको लेकर चिंता करना व्यर्थ है और आप सब इस बेवजह की बात को मुद्दा बना कहे हैं शिवलिंग अक्षत और अटूट है। कुछ और पुरोहितों ने मीडिया वाला समझकर मुझे समझाने की कोशिश की कि ये महाकाल हैं इनको कुछ नहीं हो सकता और जहां तक चढावे के फूल और पंचामृत का सवाल है तो वो तो पूजा की परंपरा है सदियों पुरानी इससे शिवलिंग को कुछ नुकसान नहीं हो सकता। मगर भोपाल लौटने पर जीएसआई की ३२ पेज की विस्तृत रिपोर्ट कुछ और कह रही थी। किसी मंदिर और उसके शिवलिंग पर बनायी गयी इस तरह की ये पहली रिपोर्ट है। रिपोर्ट में कई तरीकेसे परीक्षण करने के बाद पाया गया कि शिवलिंग कोसबसे ज्यादा नुकसान मंदिर में ही बने कोटितीर्थ जलाशय के पानी से ही रहा है। येप्रदूषित जल सेंडस्टोनसे बने शिवलिंग के क्षरण की प्रक्रिया को बढा रहा है। मिलावटी दही और दूध से लगातार चढने वाला पंचामृत भी नुकसान पहुंचा रहा है। कंडे से बनी भस्म से होने वाली भस्म आरती भी शिवलिंग को कमजोर कर रही है। ये सारी बातें लंबे शिवलिंग के तीन दिन तक किये गये अनेक वैज्ञानिक परीक्षण के बाद सामने आयीं हैं। रिपोर्ट में इन सारी धार्मिक कर्मकांडों को सांकेतिक रूप से करने को कहा गया है।
अब देखना ये है कि मंगलवार को होने वाली सुप्रीम कोर्ट में जब ये रिपोर्ट रखी जायेगी तो कोर्ट क्या संज्ञान लेता है..हांलाकि पंडे पुजारियों में विशेषज्ञों के परीक्षण के बाद घबराहट तो है क्योंकि कई बातें हम जानते तो हैं मानते नहीं..
ब्रजेश राजपूत,
एबीपी न्यूज

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