टिप्पणी : गोपाल वाजपेयी
परहित सरस धरम नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधिकाई।
अर्थात- परोपकार से बड़ा कोई धर्म-पुण्य नहीं है और दूसरों को कष्ट पहुंचाने से बड़ा कोई अधर्म-पाप नहीं है। इस सूत्र वाक्य को लेकर पत्रिका के आह्वान पर धार्मिक व सामाजिक संगठनों के साथ ही शहरवासी एक मंच पर आ गए। मकसद एक ही है कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे सात साल के मासूम अभिमन्यु के इलाज के लिए आवश्यक राशि जुटाना।
शहर के कई क्षेत्रों में चेरिटी शो व शिविर लगाए गए। विगत चार दिन से रोजाना रात्रि में ८ से ११ बजे तक टावर चौक पर चेरिटी शो का आयोजन किया जा रहा है, जहां शहरवासी स्वेच्छा से दान राशि भेंट कर रहे हैं। इस नेक काम में कर्म सेवा, धर्म सेवा संस्था के सदस्य पूरे मनोयोग से जुटे हैं। इस संस्था के सदस्य टावर चौक की चारों सड़कों पर दानपेटी लेकर लोगों से विनम्रतापूर्वक दान मांगने का उद्देश्य बता रहे हैं। लोग भी दिल खोलकर अपनी जेब की क्षमता के अनुसार दान कर रहे हैं। यह परोपकार करने की धुन ही है कि चेरिटी शो में कलाकार पूरे साजो-सामान के साथ नि:शुल्क कार्यक्रम पेश कर रहे हैं और लोगों को दान के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
यह अति जरूरतमंद को सहायता करने की ही लगन है कि चेरिटी शो के लिए साउंड व टेंट वाले नि:शुल्क सेवा दे रहे हैं। लेकिन यह देखकर मन दुखी होता है कि पुण्य के इस काम से नेताओं व अफसरों ने अब तक दूरी बनाकर रखी है। शहरवासियों के हर दुख-सुख में शामिल होने का दावा करने वाले जनप्रतिनिधियों की बेरुखी हैरान व परेशान करने वाली है।
पोस्टर्स-बैनर्स पर लाखों रुपये फूंकने वाले नेताओं को इतनी भी फुर्सत नहीं मिली कि वे ऐसा नेक काम करने वालों को मौके पर आकर शाबाशी ही दे दें। एक सप्ताह से शहर के कोने-कोने में पत्रिका के इस सामाजिक सरोकार की चर्चा हो रही है। लेकिन नेताओं व अफसरों के कानों तक यह आवाज नहीं पहुंची। शहर के हृदय स्थल टावर पर चार दिन से रात्रि में रोजाना चेरिटी शो हो रहा है। सारे नेता व अफसर यहां से गुजरते हैं, लेकिन किसी का मन नहीं पसीजा कि परोपकार के इस पुण्य काम में वह सहभागिता करें।
ये नेता व अफसर मन में ये बात लेकर जरूर बैठे हैं कि उन्हें कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाए। अगर ऐसे लोग सोचते है कि उन्हें बार-बार निवेदन करके बुलाया जाए। वे मंच पर आएं और भाषण देकर बेमतलब की वाहवाही लूटकर चले जाएं तो यह स्पष्ट है कि इस प्रकार की सोच रखने वालों का इंतजार कभी खत्म नहीं होगा। क्योंकि किसी शायर की ये पंक्तियां नहीं भूलनी चाहिए कि-
तुम्हें आसमान में उडऩे की मनाही नहीं है, शर्त
सिर्फ इतनी है कि जमीन को नजरअंदाज़ ना करो।
और-दिखावे की मोहब्बत से अच्छा है नफरत ही करो हमसे,हम सच्चे जज्बातों की बहुत कदर किया करते हैं।
यह भी बहुत शर्मनाक है कि शहर में गठित कुछ राष्ट्रीय व अंतराराष्ट्रीय स्तर के संगठन के लोगों ने भी परोपकार के इस काम में चवन्नी का सहयोग नहीं किया। ये संगठन विभिन्न प्रकार के शिविर लगाकर सामाजिक कार्यों का ढिढोरा पीटते हैं और महंगे होटल्स में कार्यक्रम कर लाखों रुपये यूं ही उड़ा देते हैं।
स्वार्थ से लवरेज ये संगठन इन कार्यक्रमों को सामाजिक सरोकार की चादर ओढ़ाकर विभिन्न मदों मेें सरकार व संस्थाओं से फंड ले लेते हैं। राहत की बात यह है कि आम शहरवासियों में इंसानियत जिंदा है। शहरवासियों के दान व दुआ के साथ बाबा महाकाल के आशीर्वाद की बदौलत अभिमन्यु गंभीर बीमारी के चक्रव्यूह से बाहर निकलेगा। क्योंकि एक शायर ने खूब कहा है-
सीख मौजों से उलझ कर जीने का सरूर,
सिर्फ साहिल से लिपटना जि़न्दगी नहीं होती।