स्कूल के बच्चे हत्यारे तो हम आप भी नहीं है दूध के धुले..

गुरूग्राम के रायन इंटरनेशनल स्कूल में हुये प्रद्युम्न मर्डर केस ने उन मां बाप की नींद उडा दी थी जो अपने बच्चों को स्कूल की बस में चढाकर चैन से हो जाते हैं। स्कूल के अंदर ही हुये इस मर्डर ने जितना दहलाया उससे ज्यादा तो चौंकाया इस खबर ने कि हत्यारा बस कंडक्टर अशोक कुमार नहीं बल्कि स्कूल में ही पढने वाला ग्यारहवीं का छात्र है। स्कूल का छात्र कैसे अपने साथी की जान ले सकता है भला, जिसने भी सुना सबके मन में यही सवाल उठा। ठीक ऐसा ही सवाल हमारे मन में भी नौ साल पहले उठा था जब छिंदवाडा के आसाराम के आश्रम में चलने वाले इंदुमति विदया निकेतन में दो छात्रों की मौत के बाद खुलासा हुआ था।
तब नौ साल पहले आसाराम के अच्छे दिन चल रहे थे। उस दौरान मीडिया उनको संत आसाराम लिखता था। मगर उनके बुरे दिनों की आहट तब आने लगी थी। 2008 के जुलाई महीने में ही अहमदाबाद में बापू ट्रस्ट के चलने वाले विघालय के दो छात्रों के शव साबरमति नदी के किनारे मिले थे। छात्रों के अभिभावकों ने आश्रम पर लापरवाही का आरोप तो लगाया ही था। आसाराम के विरोधी दबे छिपे स्वर में ये भी कहने लगे थे कि आश्रम में काला जादू होता है जिसके चलते ये दो बच्चों की मौत हुयी मगर ये मामला शांत होता उससे पहले ही हमारे एमपी के छिंदवाडा से बुरी खबर आ गयी। छिंदवाडा में आसाराम के ट्रस्ट की ओर से चलाये जा रहे इंदुमति विद्या निकेतन के स्कूल 30 जुलाई को रामकृप्ण यादव नाम के बच्चे की मौत बाथरूम में संदिग्ध हालत में हो गयी। बस फिर क्या था चैनल को मुददा मिल गया अहमदाबाद से ब्रजेश कुमार सिहं और भोपाल से ब्रजेश राजपूत यानिकी अपना लाइव प्रसारण शुरू हो गया। दोनों घटनाओं को जोड कर बडी खबर बनाकर आसाराम आश्रम के प्रबंधन को घेरा जाने लगा। आश्रम की व्यवस्थाओं पर सवाल उठाये जाने लगे पुलिस की तहकीकात की जानकारी दी जाने लगी। मगर कहते हैं कि मुसीबतें पूरी बारात के साथ आती हैं। आसाराम आश्रम प्रबंधन के मुसीबत की ये तो शुरूआत थी। 31 तारीख की शाम होने को थी मैं किसी से मिलने गया था कि छिंदवाडा से फिर फोन बजता है हमारे सहयोगी सचिन पांडे का, घबडाहट भरी आवाज में उसने बताया सर आश्रम में एक और बच्चा मर गया। क्या कह रहे हो। नहीं सर एकदम सच है पुलिस आश्रम पहुंची हुयी है हमें अंदर नहीं जाने दे रहे पक्की खबर है अंदर एक और छोटे बच्चे की हत्या हुयी है। पुलिस के बडे अधिकारी से पूछो क्या कह रहे हैं। उन दिनों छिंदवाडा में राजाबाबू सिंह एसपी हुआ करते थे। उनको फोन लगाते ही जब पूछा कि क्या सर एक और बच्चे के मरने की खबर आ रही है दूसरी तरफ से धीर गंभीर आवाज में एसपी साहब ने जबाव दिया जी आप सच कह रहे हैं आश्रम के स्कूल में दूसरे बच्चे की भी हत्या हुयी है इसका नाम वेदांत है हम आपको जल्दी ही और ब्यौरा देंगे मगर इस वक्त इतना ही।

धीरे धीरे रहस्य खुला कि दोनों बच्चों को स्कूल की बाथरूम एक ही तरीके से मारा गया बच्चे का सर पानी भरी बाल्टी में डुबो कर। बस फिर क्या था अगले दिन हम छिंदवाडा के आसाराम आश्रम के बाहर से लाइव कर रहे थे हत्या से जुडी कुछ नयी जानकारियो के साथ। इस बीच में एसपी राजाबाबू सिंह से फिर मिलना हुआ। उनसे तहकीकात से जुडी कुछ और बातें पता चलीं जो हमें लाइव में बोलने के दौरान काम आतीं रहीं। मगर आसाराम आश्रम में पहले अहमदाबाद फिर छिदवाडा में बच्चों की मौत बडा मुददा बन गयीं थीं। आसाराम और उनके भक्तों को जबाव देना कठिन हो रहा था। उधर हम रिपोर्टर ये नहीं समझ पा रहे थे कि छिंदवाडा में विवादित जमीन पर बने इस स्कूल में मासूम बच्चों का हत्यारा कौन हैं और इन मासूमों को क्यों मारा जा रहा है। कुछ दिनों बाद ये खबर ठंडी पड गयी थी और हम भोपाल लौट कर दूसरी खबरों में लग गये थे। तभी एक दिन राजाबाबू सिंह साहब का फोन आता है ब्रजेश जी आपको बताना चाहता हूं कि हमने स्कूल में बच्चों के हत्यारे को पकड लिया है और वो भी स्कूल में पढने वाला बच्चा ही है। मगर सर एक बच्चा भला दूसरे बच्चों को क्यों मारेगा वो भी एक नहीं दो। हां सच कह रहे हैं आप यही सोचते हुये हमें भी तय करने में इतना वक्त लग गया। मगर सारी तफतीश हो गयी है हमारे आईजी साहब उसका खुलासा करेंगे। इस घटना में भी हत्या करने वाला छात्र जबरन घर से इस रिहायशी स्कूल में भेजा गया था और वो कुछ ऐसा करना चाहता था जिससे स्कूल बंद हो जाये। उसने सुन रखा था कि अहमदाबाद में दो बच्चों की मौत पर स्कूल बंद करने की नौबत आ गयी थी। इसलिये उसने भी बाथरूम में दो छोटे बच्चों को पानी की बाल्टी में मुंह डुबोकर मार डाला। दूसरे बच्चे ने जब उसे हाथ पर काटा तो उसने भी बच्चे को पीठ पर काट डाला और यही काटने का निशान उसके पास तक पुलिस को ले आया। बाद में आरोप साबित होने पर नरसिंहपुर के किसान परिवार के इस लडके को किशोर सुधार गृह में भेजा गया।
रायन स्कूल और आसाराम के स्कूल के हत्या करने वाले बच्चे में यही समानता थी कि दोनों अपने स्कूलों से चिढकर स्कूल बंद कराना चाहते थे और इस जुनून में दोनों ने हत्याएं की। मगर सवाल ये है कि यदि बच्चे अपने स्कूलों से इतने चिढते हैं तो हम ऐसे स्कूल बना क्यों रहे हैं जिसे बंद कराने पर उतारू रहते हैं वहां पढने वाले बच्चे। अपराधी बच्चे नहीं हम आप भी हैं जो ऐसे स्कूल बना रहे हैं और बच्चों को जोर जबरदस्ती से वहां भेज भी रहे हैं।
ब्रजेष राजपूत,
एबीपी न्यूज
भोपाल..

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