गुजरात के गाव कांग्रेस के और शहर… क्लिक कर देखिए खबर


यूं तो गुजरात आना हमेशा ही अच्छा लगता है मगर चुनाव के मौके पर गुजरात को देखना अलग अनुभव होता है। वजह है यहां के लोगों की तासीर। आम दिनों में कारोबारी फितरत वाले गुजराती लोग काम धंधे, खाने पीने में ही मगन रहते हैं राजनीति की बहुत ज्यादा परवाह वो नहीं करते। कौन पंतप्रधान है तो कौन राज्यप्रधान और सांसद एमएलए के नाम भी वो याद नहीं रखते। चार पैसे ज्यादा खर्च हो जायें मगर धंधा और परिवार सुरक्षित रहे बस इतनी सी चाहत होती है गुजरातियों की। आम दिनों में ज्यादा बात नहीं करनेवाले गुजराती भाई चुनाव के मौकों पर खूब चखल्लस करते हैं।
हां ये जरूर है कि आम गुजराती की राजनीति की समझ बिहारी यूपी और हमारे एमपी के लोगों जैसी नहीं है। आप गुजरातियों को घनघोर यथास्थिति वादी भी कह सकते हो जो स्वाद एक बार पसंद आ गया तो आ गया फिर चाहे वो पार्टी का हो राजनीति का या फिर खमण खमणी ढोकला और फाफडे गांठिये का। नया स्वाद चखेगे तारीफ करेंगे मगर फिर कहेंगे ये अच्छा तो है मगर मजा तो वही पुराने वाले का है।
महात्मा गांधी का राज्य गुजरात स्टेट आफ बाम्बे के गुजराती बोलने वाले 12 उत्तरी जिलों को अलग कर 1960 में बना था। गठन के बाद से तकरीबन पैंतीस साल यहां कांग्रेस की सरकार रही। बीच में कुछ कुछ वक्त जरूर जनता दल जनता पार्टी का शासन रहा। मगर 1995 से बीजेपी ने जबसे यहां झंडा गाडा है वो उखडने का नाम नहीं ले रहा। हर बार बीजेपी की सरकार को पलटे की कोशिश खूब की जाती है मगर बीजेपी का रंग ढंग गुजरातियों में गहरे तक उतर गया है।
नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद तो बीजेपी का भगवा रंगत यहां और गाढी हुयी है। ये अमदाबाद, बडोदरा, राजकोट और सूरत की गलियों में घूमने से लगता है। गुजराती कारोबारियोें को नोटबंदी से घाटा हुआ है, जीएसटी जिस अंदाज में लागू की गयी उससे वो बेहद नाराज हैं फिर भी मोदी के साथ है। वजह जानने के लिये जब हम सूरत के टैक्सटाइल मार्केट में पहुंचे तो जबाव दिया साडियों के बडे कारोबारी नरेन्द्र साबू ने कहा जीएसटी लागू करने के बाद जब हमारी जरा भी नहीं सुनी गयी तो यहां नाराजगी में कई दिन कारोबार बंद रहा मगर जीएसटी तो कानून बन गया उसे तो कांग्रेसस भी नहीं बदल सकती फिर क्यों राहुल गांधी को वोट दें। बीजेपी ने हमारे धंधे को संपन्नता और परिवार को सुरक्षा दी है तो हम क्यों दूसरे को देखें। उनकी दुकान से निकलते वक्त सेल्समेन ने पकड लिया कहा जब राहुल कहते हैं गुजरात में रोजगार नहीं है तो हमको हंसी आती है अरे पूरे देश में गुजरात में ही तो रोजगार है, साडी का बंडल उठाने वाला मजदूर भी दिन भर में हमारे यहां हजार रूप्ये कमाकर लौटता है। आप सब उसकी झूठी बातों को क्यों दिखाते हो। कांग्रेस गुजरात में कभी नहीं आयेगी। क्यों, ये मेरा सवाल था, अरे कांग्रेस आयेगी तो मुसलमान गुंडे आयेंगे वो हफता वसूली करेंगे, दंगे होंगे और कफर्यू लगेगा, हमारा धंधे में घाटा होगा। नहीं चाहिये ऐसी सरकार। मैने कहा मगर ये तो बेवजह का डर दिखाया जा रहा है आपको हां हमें आप डरा हुआ मान लों हम डरपोक हैं मगर हम तो मोदी को ही जितायेंगे वो हमारा नेता है वो पूरे देश को गोवर्धन पर्वत जैसा उठाये हुये है हम गुजरात के लोग उस पर्वत के नीचे खडे हैं ये थे यूपी से आकर साडी का कारोबार करने वाले दुर्गेश जो अब यहीं के होकर रह गये।
गुजरात का सूरत शहर सुधरा हुआ मुंबई लगता है करीब पैंसठ लाख की आबादी वाले इस शहर की सडकों के बाजार में हर तीसरी चौथी दुकान खाने पीने की है। फिर चाहे वो गुजराती थाली, पंजाबी परांठा, इडली डोसा, चाइनीज खाने या फिर आइसक्रीम और मिठाई की हो। ढोकला, खमण, गांठिया और चाय के खोमचे तो हर थोडी दूर पर हैं। अठवा गेट पर सुबह की सैर के बाद दोस्तों के साथ तुलसी अदरक की कडक चाय पी रहे जयेश बोलते हैं हां हमें बहुत नाराजगी थी मोदी सरकार से मगर हम नाराज हैं पर गददार नहीं। वोट तो मोदी को ही देंगे और ये आपके एक्जिट पोल ही कह रहे हैं कि बीजेपी की सरकार फिर आ रही है हमारे यहां। कांग्रेस से कह दीजिये गुजरात में सरकार बनाने के सपने देखने छोड दे। हार्दिक की रैली में भीड वो कितना भी जुटा ले वहां आने वाले भी बीजेपी को नहीं मगर मोदी जी को वोट जरूर देंगे।
मगर सूरत सरीखे शहरों से दूर गुजरात के गांवों में लोगों के सुर ठीक उल्टे सुनाई देते हैं। वहां वो पानी बिजली और रोजगार नहीं मिलने की शिकायत करते मिलते है। लीमखेडी कस्बे में सिंधिया की सभा सुनने आया युवा बेरोजगार अशोक तडवी बताता है कि हमारे यहां नेता चुनाव जीतने के बाद घर भरता है जनता की परवाह नहीं करता इसलिये सरकार इस बार पलटी होनी चाहिये। मगर बीजेपी का गेम प्लान गांव नहीं शहर ही है अकेले अमदाबाद में 21 तो सूरत शहर में 16 सीटें हैं बडौदा में दस तो राजकोट में आठ भावनगर में सात असेंबली सीटें हैं। जहां की शहरी आबादी पर मोदी और बीजेपी का जादू चलता है। गुजरात में असंतोष वाले आदिवासी और ग्रामीण सीटों में कांग्रेस बेहतर करेगी भी तो यहां इन शहरों से मिलने वाली संभावित एकतरफा हार उसका भटटा बैठाने के लिये काफी है। बाकी तो गुजरात के चुनाव का उंट किस करवट बैठता है ये तो कल पता चल ही जायेगा।
ब्रजेश राजपूत,
एबीपी न्यूज
भोपाल

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