*निवेशकर्ताओं से धोखाधड़ी सफेदपोश अपराध*
इंदौर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट बेंच इंदौर ने लोगों से धन निवेश कर धोखाधड़ी करने वाली कंपनी के एजेंट के विरुद्ध दर्ज प्रकरण को समाप्त करने वाली याचिका को निरस्त करते हुए प्रकरण न्यायालय में चलते रहने का आदेश दिया है। शासन की ओर से पैरवी शासकीय अधिवक्ता पंकज वाधवानी ने की!
*मामला जी एन गोल्ड ग्रुप कंपनी का*
जी एन डेयरीज लिमिटेड एव जी एन गोल्ड इंडिया लिमिटेड कंपनी द्वारा मध्यप्रदेश के देवास एवं आसपास के जिलों की आम जनता को कंपनी की विभिन्न योजनाओं, स्कीमों, पॉलिसियों की भ्रामक जानकारी देकर कम समय में अधिक धन कमाने का प्रलोभन देकर मासिक, वार्षिक एवं सावधि जमा अवधि के नाम पर नगद राशि से निवेश करा कर बेईमानी पूर्वक एवं योजनाबद्ध तरीके से धोखाधड़ी की थी। कंपनी द्वारा निवेशकों को आर डी खाता एवं एफडी बनाकर सर्टिफिकेट भी प्रदान किए थे जिनकी मैच्योरिटी अवधि पूर्ण होने पर भी निवेशकर्ताओं एवं फरियादियों को उनका मूलधन एवं ब्याज नहीं लौटाया गया था। जिस पर थाना सोनकच्छ जिला देवास में आरोपित कंपनी एवं उसके कर्ता-धर्ता के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 420,406, 409, 120 बी एवं धारा 6 मध्यप्रदेश निक्षेपकों के हितों का संरक्षण अधिनियम 2000 के तहत प्रकरण पंजीबद्ध किया गया था।
*तीन करोड़ से ज्यादा राशि की धोखाधड़ी*
पुलिस द्वारा मामले की जांच करने पर यह पाया गया कि कंपनी के कर्ताधर्ताओं ने आम नागरिकों के लगभग 3 करोड रुपए से ज्यादा रुपयों की हेराफेरी की है और जांच के उपरांत अपराध सिद्ध पाए जाने पर अंतिम प्रतिवेदन न्यायालय में विचारण हेतु प्रस्तुत किया था। उक्त कंपनी में कार्य करने वाले सुरेंद्र सिंह पिता मोहन सिंह नेभी कंपनी के कर्ताधर्ताओं के साथ मिलकर षड्यंत्र पूर्वक आम जनता को उक्त चिटफंड कंपनी का प्रचार प्रसार कर विभिन्न स्कूलों में प्रलोभन लालच देकर निवेशकर्ताओं से नगद रुपए का निवेश कराया।
*स्वयं फरियादी होने पर याचिका लगाई*
याचिकाकर्ता सुरेंद्र सिंह ने उक्त कंपनी के विरुद्ध जनसुनवाई में तथा अन्य पुलिस पदाधिकारियों के समक्ष फरियादी बन कर स्वयं शिकायत प्रस्तुत की थी और इसी आधार पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अंतर्गत उसके विरुद्ध पंजीबद्ध FIR एवं आरोप पत्र के खात्मे के लिए याचिका प्रस्तुत की थी !
*शासन का तर्क-सफेदपोश अपराध*
शासन की ओर से पैरवी करते हुए शासकीय अधिवक्ता पंकज वाधवानी ने यह तर्क रखा कि कंपनी द्वारा सैकड़ों पीड़ितों को प्रलोभन देकर करोड़ों रुपए निवेश करवाए गए हैं। यह अपराध सफेदपोश अपराध की श्रेणी में आता है और आर्थिक सामाजिक अपराध में किसी भी प्रकार की कोई रियायत नहीं दी जानी चाहिए। तर्कों से सहमत होकर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने याचिका निरस्त करते हुए आदेश दिया की याचिका कर्ता के विरुद्ध विचारण चलता रहेगा।