वैसे हम गये हुये तो थे भिंड में पत्रकार संदीप शर्मा की मौत की खबर करने। मगर संदीप शर्मा की मौत जुडी हुयी थी स्थानीय रेत खनन माफिया से इसलिये खनन माफिया की खबर लेना जरूरी थी। इस साल मार्च के आखिरी दिनों में भिंड में पत्रकार संदीप शर्मा की डंपर से कुचलकर हुयी मौत की खबर ने पत्रकारिता जगत में सनसनी फैला दी थी। भिंड के इस युवा पत्रकार ने खनन माफिया और पुलिस प्रशासन के बीच चल रहे गठजोड को सामने लाया था। चैनल से इस खबर को करने की मंजूरी मिलते ही हम भिंड में थे।
संदीप ने अपने पत्रकारिता के शुरूआती दिनों में ही अवैध उत्खनन कर भरी गये रेत का ट्रक निकालवाने में पुलिस किस तरह पैसे वसूलती है इसका स्टिंग आपरेशन किया था। जिसके बाद पुलिस वाले का तो तबादला हुआ ही संदीप पर भी मारपीट के मामले दर्ज हो गये। संदीप ये भूल गया था कि सिस्टम किसी एक पुलिस वाले से नही चलता। रेत के ट्रक निकालने के एवज में मिलने वाला पैसों का खेल तब से लेकर अब तक जारी है। ओर हम इसी खेल को देखना चाहते थे।
हमने अपने भिंड के साथियों से कहा कि दिनदहाडे नदी से रेत कैसे भरी जाती है ये देखना है। फिर वो रेत कैसे बिकती है ये भी शूट करना है पहले तो मित्रों ने मना किया कि ये सब नहीं करिये। बहुत गर्मी है भिंड के पेडे और लस्सी खाइयेे। मगर जब उनको अंदाजा हो गया कि इस खबर को लेकर हम गंभीर हैं तो उन्होंने बताया कि रेत की खदानों पर जाना आसान नहीं होतां आमतौर पर ये खदानें गांव पार कर होती हैं और आजकल नदी किनारें के गांवों में रेत का काम कुटीर उदयोग जैसा फैल गया है। भिंड के हमारे साथी अजय चौधरी और प्रदीप शर्मा ने समझाया कि रेत की खदान पर चलने के लिये किसी रेत माफिया से ही संपर्क करना होगा तभी वहां जाना संभव है। तलाश शुरू हुयी कि रेत माफिया किसकी सुनते या डरते है तब सामने आया एक बडे जन प्रतिनिधि का नाम। बस फिर क्या हम धमक गये रेस्ट हाउस जहाँ दरबार सजा था। हमारे साथियों से चिरौरी की कि ये भोपाल से आये हैं और खदान देखना चाहते हैं किसी से कह दो। जनप्रतिनिधि पहले तो नाराज हुये कि रेत से हमारा क्या काम इनको काय यहां लाये। मगर बाद में उनको समझाया कि आप मदद नहीं करोगे तो कौन करेगा ये इतनी दूर से आये हैं। सत्तााधारी पार्टी से जुडे उन सज्जन ने किसी जनपद सदस्य का नंबर दिया। कहा इससे बात करो ये अपने गांव में हो रही खुदाई से नाराज है और कोई इसकी सुन नहीं रहा। ये खदान तक ले जायेेगा। निकलते हुये हमारे साथियों ने पूछा कि कोई हमला तो नहीं करेगा ना इस पर वो गुर्राये अरे हम क्या यहां झक मारने के लिये बैठे हैं जाओ। और नही तो रूको रात में हमारे साथ चलना बतायेंगे बडी मशीनों से कैसे रेत निकालते हैं मगर हमारे साथ चलोगे तो टकराव का डर बना रहेगा इसलिये उजाले में जाओ ओर जल्दी कैमरा चला कर भाग आओ।
बस फिर क्या था हम चल पडे भिंड से करीब पैंतीस किलोमीटर दूर तेनगुर गांव की ओर जहंा भिंड जिले में बहने वाली सिंध नदी में होता है रेत का अवैध उत्खनन। मुख्य सडक से मुडते ही खडी हुयी थी डायल हंडेड की गाडी। गाडी में दो अलसाये सिपाही पडे थे हमारी गाडी मुडते देख सतर्क हये वो तो हमारे साथियों ने बताया कि इन दिनों ये गाडियां मुखबिरी का काम करती हैं। हमारे जाते ही आगे के रास्ते पर फोन हो गया होगा। तेनगुर गांव से कुछ दूर पहले खडे हुये थे ढेर सारे डंपर। ये कई सारे डंपर और उनका स्टाफ रात की डयूटी की तैयारी के लिये फिलहाल आराम की मुद्रा में थे। गांव के पास आते ही दिखने लगे रेत के टीले। ये टीले स्कूल के चारों तरफ उसे घेरे थे तो घरों के सामने भी सडक के दोनों ओर रेत के टीले ही नजर आ रहे थे। गाँव के घरों में गाय बैलौं के साथ टैक्टर और टाली भी मुंह नीचा कर दाना पानी कर रहे थे। जैसे जैसे हम गांव पार कर नदी की ओर जा रहे थे रोमांच बढता जा रहा था। हमारे साथी कैमरामेन होमेंद्र का कैमरा पूरे वक्त अपना काम कर रहा था। हमारा गांव का संपर्क मिल गया था जो हमे नदी किनारे ले जा रहा था। मगर ये क्या नदी के काफी पहले से उंचाई से ही दिखने लगे सिंध नदी में अंदर और बाहर खडे अनेक टैक्टर टाली ओर उनमें लगातार फावडे से रेत भर रहे मजदूर। नदी में पानी और बहाव नाम का ही था। हमारे संपर्क ने बताया कि ये देखिये भरी दोपहरी में रेत खोदी जा रही है। जब अंधेरा हो जायेगा तो इस किनारे पर जेसीबी मशीने आ जायेंगी वो रेत टाली में भर देंगी। अभी ये मशीनें छिपा कर रखीं गयीं हैं गाँव के घरों मे ही।
तभी हमें कैमरा चलाता देख कुछ मुंह बांधे लोग मोटरसाइकिल पर तेज गति से आये। हमें लगा कि अब हुआ टकराव मगर हमारे संपर्क को देख वो रूक गये और उनको दबा देख हमने माइक लगाकर उनसे भी सवाल करने शुरू कर दिये। ये अवैध उत्खनन क्यों कर रहे हो। इस पर उनका जबाव दीवार फिल्म के अमिताभ बच्चन जैसा था कि पहले उसका जबाव लाओ जिसने मेरे हाथ पर ये लिखा है। गांव के इन लोगों ने सारी तोहमत पुलिस और रेत भरवा रहे माफिया पर डालनी शुरू कर दी। कहा हम तो एक से दो हजार रूपये में टैक्टर भरवाते हैं ये सवाल उनसे पूछो जो टकों में भरकर रेत यूपी ले जाकर लाख रूपये तक में बेचते हैं। खेर इस बहसा बहसी के बीच हमारा काम हो गया था। होमेंद्र के काम हो गया का इशारा मिलते ही हम गाडियों में लद लिये और लौटने लगे सोचा रास्ते में पडने वाले थानेदार साब से भी इस रेत के उत्खनन पर सवाल पूछें तो पता चला कि आपकी गाडी गांव जाने की खबर के बाद से ही साहब शहर की और कूच कर गये हैं। पता नहीं कब आयेंगे। आने का इंतजार तो संदीप शर्मा मामले में सीबीआई जांच रिपोर्ट का भी है पता नहीं कब आयेगी। मगर इन जाँच रिपोर्टों से बेपरवाह भिण्ड के चम्बल और सिंध में के किनारे की रेत धडल्ले से निकाली जा रही है इसमें किसी संदीप के आने जाने से फर्क नहीं पड रहा।
ब्रजेश राजपूत,
एबीपी न्यूज
भोपाल