उज्जैन। राजनीति ने एक ऐसा पासा फेंका कि सांसद और मंत्री सब अपनों के बीच बेगाने हो गए.. जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सुरक्षा की चिंता किए बिना पिछले कई सालों से पैदल भ्रमण कर रहे थे.. वहां अब सांसद और मंत्री के आगे पीछे कड़ी सुरक्षा लगाई जा रही है.. ।यह प्रश्न राजनीति के लिए ही नहीं बल्कि समाज के लिए भी चिंता का विषय हो गया है..।
धार्मिक नगरी उज्जैन में एट्रोसिटी एक्ट और आर्थिक आधार पर आरक्षण को लेकर जिस प्रकार का आंदोलन चल रहा है, उससे सरकार ही नहीं बल्कि स्थानी जिला प्रशासन और पुलिस विभाग की भी चिंता बढ़ गई है ।उज्जैन से 5 बार से भाजपा का प्रतिनिधित्व करने वाले ऊर्जा मंत्री पारस जैन की सुरक्षा बढ़ा दी गई है । आरक्षण को लेकर विवादित बयान देने वाले सांसद चिंतामणि मालवीय की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई है। पुलिस विभाग के आला अधिकारियों का कहना है कि जिस प्रकार उज्जैन जिले में लगातार प्रदर्शन हो रहा है, उसे जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा चाक चौबंद की गई है। इसके अतिरिक्त केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत के उज्जैन दौरे पर भी सुरक्षा के इंतजाम बढ़ाए जाएंगे। यह सब कुछ चंद दिनों में घटित हो गया है। जहां राजनीतिक पार्टियों की लोकप्रियता पर भी सवाल उठ गए हैं, आने वाले विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी की चिंता लगातार बढ़ रही है । जिस प्रकार सामान्य और पिछड़ा वर्ग के लोगों ने अपनी ताकत दिखाते हुए इस बार समाज को बांटने वाले लोगों के खिलाफ वोट डालने का मन बना है, उससे राजनीतिक समीकरण बिगड़ गए हैं। समय रहते अगर अभी भी कोई बड़ा फैसला नहीं हुआ तो आने वाले समय में राजनीतिक पार्टियों की मुश्किलें और भी बढ़ने वाली है। सपाक्स, परशुराम सेना, करणी सेना और पिछड़ा वर्ग के ऐतिहासिक प्रदर्शन के बाद अब ब्राह्मण समाज अलग से भी मैदान में कूद गया है । इसके अलावा जैन समाज भी सपाक्स के संपर्क में है । ऐसी स्थिति में आने वाले समय में धर्म और जाति के आधार पर राजनीति करने वालों को मिलने वाली सफलता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है।
क्षत्रिय महासभा के नेता अनिल सिंह चंदेल और हरदयाल सिंह ठाकुर ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कई जनप्रतिनिधि एट्रोसिटी एक्ट को लेकर भ्रामक बयान बाजी कर रहे हैं। उनका कहना है कि एट्रोसिटी एक्ट में जिस प्रकार की धाराएं जोड़ी गई है, वह समाज को बांटने वाली है और बेहद खतरनाक है। ऐसी स्थिति में स्वर्ण, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग के लोगों को विपरीत परिस्थितियों के दौर से गुजरना पड़ रहा है। इसके अलावा जो आक्रोश जनता के बीच पनप रहा है , वह समाज के हित में नहीं है, इसलिए कानून में बदलाव बेहद जरूरी है।