कहीं अटके, तो कहीं लटके मकान.. पीएम आवास की अजीब दास्तान..

कहीं अटके तो कहीं लटके मकान यानिकी पीएम आवास .
पत्रकारिता करते करते कुछ मसलों या कहें कि मुददों से प्यार सा हो जाता है। होते हैं कुछ मसले दिल के करीब जिन पर कहानी करने को दिल बार बार करता है। पीएम आवास योजना ऐसा ही विषय है जो मुझे हमेशा कहानी करने को प्रेरित करता है। वजह ये है कि देश के किसी भी इलाके में रहने वाले गरीब को पक्का घर मिलना किसी बडे सपने के सच होने जैसा होता है। मगर सपना देखना और उसके सच होने में अडंगे भी बहुत हैं। तो तमाम गाजे बाजे और प्रचार प्रसार के बाद भी गरीब अवाम को आवास मिलना आसान नहीं होता।


2017 में शाजापुर के जफर मुल्तानी ने पचैरा गांव के देवीलाल की कहानी भेजी थी कि जिसमें हाथ और घुटनों के बल चलता एक विकलांग अपना आधा अधूरा घर दिखाता है वो विजुअल आज भी आंखों के आगे घूमता है। 2018 में बिछिया के विमल पवार ने कहानी बतायी थी कि बालाघाट जिले के गांवों में आधे अधूरे मकानों पर सामने छपाई पुताई कर हितग्राही की फोटो खींच कर बिना छत के अधबने मकानों को पूरे बने मकान की गिनती में बता दिया। ये कहानी घंटी बजाओ पर चली और मुझे रामनाथ गोयनका अवार्ड दिला गयी। तोे ऐसे पीएम आवास से अनुराग बढता गया और जब विदिशा के प्रितेश अग्रवाल ने बताया कि शहर में ऐसे कई पीएम आवास हैं या जिनको बोलचाल की भाषा में कुटी कहा जाता है वो आधे अधूरे हैं उनकी पूरी किश्तें नहीं आयीं मगर बारिश आ गयी है तो लोगों को पन्नी तानकर रहना पड रहा है क्योंकि कुटी की मंजूरी मिलते ही कच्चा मकान तो तोड ही लिया है।
विदिशा सागर बाईपास पर थोडी दूर चलने के बाद बायीं तरफ उतरने पर जा रही करैरा रोड पर ही कटी है आचार्य कालोनी। इस छोटी सी बस्ती में करीब बीस से पच्चीस लोगों को पीएम आवास योजना का लाभ मिला है। दरअसल शहरी क्षेत्रों में मकान बनाने पर ढाई लाख रूप्ये मकान और शौचालय के मिलते हैं मगर यहंा पर अधिकतर के मकान आधे बने खडे हैं। वजह बैंक खातों में पूरे पैसों का नहीं आना। किसी की किश्त साल भर से किसी की छह महीने से रूकी पडी है। कहीं चुनावी आचार संहिता का रोना है तो कहीं पैसा नहीं खिलाया तो सताने का मजा लिया जा रहा है। इन्हीं सब में मिले धर्मेद्र प्रजापति जिन्होंने दो कमरे का पक्का मकान तो तान लिया है मगर छत की जगह नीली पन्नी टंगी हैं। पिछली किश्त एक लाख चालीस हजार की आयी थी पासबुक देखी तो ठीक उसी दिन यानिकी 30 जुलाई 2018 को हमारे कैमरामेन होमेंद्र बुदबुदाये सर ये तो किश्त की वर्षगांठ हो गयी। धर्मेद्र के आधे अधूरे घर में बहन की शादी की तैयारी भी हो रही है उम्मीद है आज नहीं तो कल किश्त आयेगी और इस बिना छत के मकान से बहन की विदाई कर दी जायेगी। उसी मोहल्ले में मिले रामकरण जो लकवा पीडित हैं बायें हाथ और पैर में संवेदना नहीं है पहले मजदूरी करते थे मगर अब घर पर ही रहते हैं दो बेटों के साथ। उनका घर भी बिना छपाई के खडा है। फर्श भी नहीं हुआ तो पूरी घर में कीचड और गढडे अलग हैं दुखी होकर बताते हैं कि पहले सोचा था कि जल्दी घर बन जायेगा तो इस घर में बहू ले आयेंगे मगर अभी काफी पैसा बकाया है पैसा नहीं आ रहा क्यों नहीं आ रहा कोई नहीं बताता। बाकी की किश्तें बुलाने में गांठ से कुछ पैसे ढीले हो गये मगर मकान नहीं बन पा रहा। घर के बाहर जूता लटका है बुरी नजर से बचाने के लिये मगर नजर तो लग ही गयी तभी आधा मकान ही बन सका है। कुछ और मकान इस कालोनी में यूं ही पडे हैं। अधबने मकानों में बारिश में कैसे दिन रात गुजरते हैं कोई इन लोगों से पूछे। जब इस मसले पर हम विदिशा के कलेक्टर से बात करने जा रहे थे तो करैयाखेडा रोड पर दिखा राधेलाल का मकान जिसके बाहर मकान पूर्ण होने और अनुदान राशि ढाई लाख रूप्ये मिलने का जिक्र किया था। उत्सुकता वश गाडी रोक कर जब मकान में गये तो वहां भी वही हाल अंदर के कमरों में छपाई नहीं आधी छत खुली और शौचालय का काम पूरा नहीं। राधेलाल ने सहमते हुये बताया कि लिखा जरूर ढाई लाख है मगर मिला तो सवा दो लाख ही है अभी भी पैसा बकाया है। हमें इसके बगल में खडाकर फोटो जरूर खींच ले गये। क्या करें नगर पालिका के अधिकारी जो कहते हैं करना पडता है। शहर में आधे अधूरे मकान पीएम आवास योजना के खडे हैं ये बात कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह जानते हैं और मानते हैं कि लंबी कागजी कार्यवाही जियो टेगिंग और चुनाव के चलते काम अटक गया था मगर अगले दो महीने में इन मकानों को जरूर पूरा करेंगे ये वायदा करते हैं। हमने अपने विदिशा के साथी प्रितेश से कहा कि कलेक्टर साब के वायदे पर कितना अमल हुआ ये देखने हम दो महीने बाद फिर कहानी करने आयेंगे क्योंकि पीएम आवास योजना की कहानियां हमारे दिल के जो करीब हैं।
ब्रजेश राजपूत,
एबीपी न्यूज
भोपाल

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