उज्जैन। सरकार, समीकरण और समय के अनुसार अधिकारियों का चयन और बदलाव होते रहता है लेकिन बदलाव की बयार के साथ भी कुछ ऐसे अधिकारी हमेशा याद रहते हैं जो खुद विषपान करके भी किसी का नुकसान नहीं करते। ऐसे ही है उज्जैन के कलेक्टर आईएएस शशांक मिश्र।
उज्जैन में लगभग डेढ़ साल तक सेवाएं देने वाले आईएएस अधिकारी शशांक मिश्र ने स्वास्थ्य शिक्षा के इंतजामों में आमूलचूल परिवर्तन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने उज्जैन में पदस्थापना के बाद से ही लगातार स्कूल और स्वास्थ्य विभाग पर नजर रखी, यहां श्री मिश्र के कार्यकाल में कई ऐसे बदलाव हुए हैं जो महसूस भी किए जा रहे हैं। सरल और साफगोई के धनी आईएएस अधिकारी शशांक मिश्र हमेशा से ही स्पष्ट वादी और निष्पक्ष रहे हैं। उन्होंने सरकार बदलने के साथ भी अपना दृष्टिकोण नहीं बदला। उन्होंने हमेशा सभी को न्याय की नजर से देखा । सबसे बड़ी खासियत श्री मिश्र की यह है कि उन्होंने सभी प्रकार की परिस्थितियों में कभी भी धैर्य नहीं छोड़ा, उन्होंने हमेशा शांति और स्थिर मन से फैसले लिए।
जब भी किसी कर्मचारी अधिकारी पर बड़े संकट का संकेत मिला तो उन्होंने सारी जिम्मेदारियां खुद अपने सिर पर ले ली। ऐसा ही कुछ आरडी गार्डी के मामले में भी देखने को मिला। उन्होंने कई अधिकारियों को स्वास्थ्य संबंधी जिम्मेदारी सौंपी। इसके अलावा शहर के अलग-अलग इलाकों में भी राजस्व विभाग के अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई। सभी ने अपनी ओर से जिम्मेदारी निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन फिर भी असंतुष्टि की खबरों ने सुर्खियां बटोर ली। ऐसी परिस्थिति में भी आईएएस अधिकारी शशांक मिश्र किसी भी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ा । उन्होंने सरकारी कामकाज के तरीके पर नजर रखने के साथ-साथ उन कर्मचारियों पर भी निगाह रखी जो समय पर दफ्तर नहीं जाते थे। उनके कार्यकाल में शासकीय कर्मचारी समय पर कार्यालय पहुंचने लगे।
उज्जैन पर आए कोरोना के संकट को टालने के लिए श्रद्धालुओं की मंशा के अनुरूप उन्होंने चौबीस खंबा माता की पूजा-अर्चना भी की । सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कलेक्टर श्री मिश्र प्रतिदिन नियमित रूप से भगवान महाकाल के दरबार में पहुंचकर पूजा अर्चना भी कर रहे थे। वे सतत रूप से भगवान को जल भी अर्पित कर रहे थे ताकी कोरोना के संकट से उज्जैन को उभारा जा सके। फिलहाल श्री मिश्र को भोपाल मेंं पदस्थ किया गया है। संभावना है कि श्री मिश्र को नए जिले की कमान सौंपी जा सकती है।
अंत में.. भगवान महाकाल की नगरी में न तो कोई अपनी इच्छा से आता है और ना ही कोई अपनी इच्छा से जा सकता है। ऐसी स्थिति में जिला प्रशासन में जो भी बदलाव हुआ है उसे सभी को स्वीकारना चाहिए।