लिफाफाकांड : पूरा खुलासा, क्या कहा अधिकारियों ने..

उज्जैन/आगर। एक आईपीएस अधिकारी के खिलाफ सोशल मीडिया पर जमकर वीडियो वायरल हो रहा है। लिखा जा रहा है कि आगर के रेस्ट हाउस पर पुलिस अधिकारियों से सिलसिलेवार लिफाफे लिए जा रहे हैं लेकिन पूरे वीडियो का क्या सच है?  देखिए खुलासा।

वीडियो साल 2016 का बताया जा रहा है। जब उज्जैन के आईजी के रूप में पदस्थ आईपीएस  व्ही मधु कुमार थे।  यह कहा जा रहा है कि आईजी व्ही मधु कुमार ने आगर के रेस्ट हाउस पर कथित रूप से आगर जिले के तीन थाना प्रभारियों से लिफाफे लिए थे। हालांकि लिफाफे के अंदर क्या था ? इसका खुलासा भी इस रिपोर्ट में होगा।

उज्जैन में 5 सालों तक आईजी और एडीजी पद पर पदस्थ रहे व्ही मधुकुमार वर्तमान में ट्रांसपोर्ट कमिश्नर थे लेकिन इस कथित वीडियो के आने के बाद उन्हें हटा दिया गया है। उनके खिलाफ जांच भी करवाई जाने की बात कही जा रही है। क्योंकि मध्य प्रदेश में उपचुनाव होना है ऐसे में सरकार थोड़ी सी भी रिस्क नहीं उठाना चाहती है। यह भी जानना उचित नहीं समझा गया कि वीडियो में दिख रहे हैं पुलिस अधिकारियों से बातचीत की जाए और जानकारी हासिल की जाए।

पुलिस विभाग के सूत्रों की माने तो वीडियो में तत्कालीन आईजी के साथ सिलसिलेवार तीन पुलिस अधिकारी दिखाई दे रहे हैं। इनमें एक पुलिस अधिकारी तत्कालीन आगर थाना प्रभारी सवाई सिंह नागर थे जबकि दूसरे पुलिस अधिकारी कानड़ और नलखेड़ा थाना प्रभारी थे। इनमेंं  इंस्पेक्टर जी एस बिसैन तथा यशवंत गायकवाड़ थे।

पुलिस अधिकारियों से जब “उज्जैन चर्चा” में बातचीत की तो उन्होंने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि तत्कालीन आईजी व्ही मधु कुमार ने उन्हें गोपनीय जांच का टास्क दिया था। इसके अलावा यह भी कहा था कि इस बात की जानकारी एक दूसरे पुलिस अधिकारियों को नहीं लग पाए। वीडियो में क्या कुछ दिखाई दे रहा है और उसे किस तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है इस बारे में वे कुछ भी नहीं कहेंगे लेकिन पुलिस अधिकारियों द्वारा पूरे मामले में सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों से इनकार किया गया है।

पुलिस महकमे की अगर जांच भी होगी तो इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका इन्हीं पुलिस अधिकारियों की रहेगी। बताया जाता है कि इन पुलिस अधिकारियों में एक अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। पुलिस विभाग की ओर से यह भी जानकारी दी जा रही है कि जब तीनों थाना प्रभारी उक्त स्थान पर पदस्थ थे। उस समय आगर जिले की कमान आर एस मीणा के हाथ में थी, वे एसपी के रूप में वहां सेवाएं दे रहे थे।

सोशल मीडिया और खबरों में चल रही जानकारी तो आपने देख ली लेकिन उन पुलिस अधिकारियों से हुई बातचीत के अंश पहली बार आपको “उज्जैन चर्चा” के माध्यम से देखने को मिले हैं। पुलिस की जांच में गवाह और सबूत का काफी महाम रोल रहता है । 

घड़ी में लगा था कैमरा..

यह भी बात सामने आ रही है कि जिस खुफिया कैमरे से पूरी रिकॉर्डिंग वायरल हुई है, वह घड़ी में लगा हुआ था लेकिन अब प्रश्न यह उठता है कि इस रिकॉर्डिंग को 4 साल बाद उपचुनावों के ठीक पहले क्यों वायरल किया गया ? इसके पीछे किन लोगों का क्या उद्देश है ? इसकी जांच भी होना चाहिए। यह भी चर्चा चल रही है कि पुलिस महकमे की मिलीभगत से ही वीडियो बनाया गया था और यह भी चर्चा है कि पुलिस वालों ने ही इस वीडियो को बनाकर वायरल किया है। 

 

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